Sunday, 25 May 2014

उन्हें मन में कभी उभरने नहीं देते

संसार मेंसज्जन और दुर्जन पुरुष सभी कालों में रहते आये हैं। स्वभाव-भेद से उनका कभी मेल नहीं बैठता। सज्जन लोग स्वभाव से सरल और दयालु होते हैं। उसके विपरीत दुर्जन कुटिल और क्रूर होते हैं। वे विषय-व्यसनी, भोग-प्रवृत्ति प्रधान होते हैं। जैसे चन्दन के वृक्ष पर सर्प लिपटे रहकर भी कभी अपने विष का त्याग नहीं करता, उसी प्रकार दुष्ट कभी अपनी दुष्टता नहीं छोडता। ऐसे दुष्टों को ठिकाने लगाने के लिए धर्मात्मा लोगों को भी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित एक विशाल बलवान् क्षत्रियों की सेना रखनी चाहिए। जो अपने शौर्य और बल पराक्रम से दुष्टों को तेजहीन करके संग्राम में उनके प्राणों का हरण कर सके। परमात्मा सदैव सज्जनों की रक्षा करते हैं। परमात्मा की सहायता और आशीर्वाद पुरुषार्थी जनों को ही प्राप्त होता है। इसलिए सज्जनों को पुरुषार्थी होकर दुष्टों से सदैव सावधान रहना चाहिए। जैसे साधक-लोग अपने मानसिक काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि दोषों से सावधान रहते हैं। उन्हें मन में कभी उभरने नहीं देते, वैसे ही बाहरी दुष्ट-पुरुषों को भी समाज में कभी सिर उठाने का अवसर नहीं देना चाहिए। तभी संसार में धर्म की विजय सम्भव होती है। पाप का विनाश करना भी ईश्वरीय आज्ञा है।

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