Sunday, 25 May 2014

आत्मज्ञान द्वारा प्रभु को जान लिया था

मित्रो, वाराणसी के चर्मकार परिवार मेँ जन्मे रविदास जिन्हे लोग-बाग रैदास के नाम से जानते हैँ के चरित्र, आध्यात्मिक साधना और विनयशील स्वभाव के कारण लाखोँ लोग, उनके जीवनकाल मेँ ही उनके शिष्य हो गये थे। अपने पारिवारिक कार्य को लेकर उनमेँ कोई ग्लानि नहीँ थी। पञ्चगंगा घाट के प्रसिद्ध संत स्वामी रामानन्द का शिष्य बनने की इच्छा भक्त रैदास के मन मेँ जागी, तो स्वामी रामानन्द ने इसे तुरन्त स्वीकार कर लिया। रैदास बोले हम चमार हैँ, तो स्वामीजी ने कहा, प्रभु के यहाँ जन्म से कोई छोटा-बड़ा नहीँ होता केवल आचरण से होता है। स्वामी रामानन्द ने रैदास को प्रभु राम की भक्ति तथा भजन लिखने का आग्रह किया। संत रैदास भक्ति-भाव से भजन लिखकर अपना कार्य भी किया करते और यही उनकी दिनचर्या थी।
संत रविदास ने वास्तव मेँ आत्मज्ञान द्वारा प्रभु को जान लिया था, तभी तो वेद, उपनिषदो के गूढ़ रहस्योँ को वे जानते थे। जन्म की जाति-पांति का विरोध करते हुए वे कहते थे कि-

जाति एक जामे एकहि चिन्हा
देह अवयव कोई नहीँ भिन्ना।

कर्म प्रधान ऋषि-मुनि गावेँ
यथा कर्म फल तैसहि पावेँ।।

जीव के जाति वरन कुल नाही
जाति भेद है जग मुरखाई।

नीति-स्मृति-शास्त्र सब गावेँ
जाति भेद शठ मूढ़ बतावेँ।।

अर्थात्‌ जीवात्मा की कोई जाति नहीँ होती, जो कुछ भेद है सो कर्म के आधार पर है और ऐसा सभी शास्त्र और ऋषिओँ का मत है।

संत रविदास की ख्याति लगातर बढ़ रही थी, उनके लाखो अनुयायी थे जिनमे हर वर्ग के लोग शामिल थे। ये देखते हुए 'सदना पीर' इन्हेँ मुसलमान बनाने आया था पर इनकी आध्यात्मिक साधना से प्रभावित होकर, रामदास नाम से इनका शिष्य बन गया। यानि स्वंय इस्लाम छोड़ दिया। संत रैदास को मुस्लिम बनाने से उनके लाखो भक्त भी मुस्लिम हो जायेगेँ ऐसा सोचकर उनपर अनेक प्रकार के दबाव बनाये जाते थे। किन्तु संत रैदास की श्रद्धा और निष्ठा को हम अटूट पाते हैँ, एक और संतश्री जातिगत भेद, ढोँग आदि के विरोध मेँ संघर्ष करते हैँ, किन्तु वैदिक धर्म मेँ अपनी पूर्ण आस्था बराबर रखते हैँ। सुल्तान सिकन्दर लोदी उनको मुस्लिम बनाने के लिए प्रलोभन तथा दबाव दोनो की नीति अपनाता हैँ, और लोगो को उनके पास भेजता है पर वो वैदिक धर्म से टस से मस नहीँ होते हुए उसे उत्तर देते हैँ कि-

वेद धरम है पूरन धरमा
वेद अतिरिक्त और सब भरमा।

वेद वाक्य उत्तम धरम
निर्मल वाका ग्यान
यह सच्चा मत छोड़कर
मैँ क्योँ पढूँ कुरान
स्त्रुति-सास्त्र-स्मृति गाई
प्राण जाय पर धरम न जाई।।

आगे कहते हैँ कि मुझे कुरानी बहिश्त की हूरे नहीँ चाहिए क्योँकि ये व्यर्थ बकवाद है।

कुरान बहिश्त न चाहिए
मुझको हूर हजार
वेद धरम त्यागूँ नहीँ
जो गल चलै कटार
वेद धरम है पूरन धरमा
करि कल्याण मिटावे भरमा
सत्य सनातन वेद हैँ,
ज्ञान धर्म मर्याद
जो ना जाने वेद को
वृथा करे बकवाद

सुल्तान सिकन्दर लोदी को जवाब देते हुए रविदासजी ने वैदिक धर्म को पवित्र गंगा के समान कहते हुए इस्लाम की तुलना तालाब से की है-

मैँ नहीँ दब्बू बाल गंवारा
गंग त्याग गहूँ ताल किनारा
प्राण तजूँ पर धर्म न देऊँ
तुमसे शाह सत्य कह देऊँ
चोटी शिखा कबहुँ तहिँ त्यागूँ
वस्त्र समेत देह भल त्यागूँ
कंठ कृपाण का करौ प्रहारा
चाहे डुबाओ सिँधु मंझारा

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