Sunday, 27 April 2014

तुम शीघ्र ही उस अविनाशी परमात्मा के हो जाओगे

अज्ञान के कारण ही मनुष्य अपने भीतर विद्यमान आनंद सागर परम पवित्र रस-सरोवर मे डुबकी न लगाकर बाह्य गंदभरे तालो मे डुबकी लगा रहा है , किन्तु फिर भी समझता है कि वह सही मार्ग है , किन्तु फिर भी समझता है कि वह भक्ति मे तल्लीन है .... अज्ञान के कारण नहीं समझ पाता कि जिस फीके पानी को ही मधु मान वह नित पान किए जा रहे है ,वह उस ईश्वरीय अमृतमयी रस का एकांश भी नहीं है । 

अतः सभी शास्त्रो मे कहा गया है कि बिना ज्ञान के मनुष्य जिसकी आराधना करनी चाहिए उसके स्वरूप का यथार्थ ज्ञान तथा उसके सच्चे आराधना का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । वह नहीं समझ पाएगा कि किसकी आराधना कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगी। यथार्थ ज्ञान ही हमे विषय-विष से बचाकर ब्रह्मामृत की ओर प्रेरित करता है .... और यह यथार्थ ज्ञान बाह्य कारणो पर निर्भर नहीं है .... वेदो का वैदिक ग्रंथो का अध्ययन करना होगा, चिंतन करना होगा मनन करना होगा...तत्पश्चात साधना एवं आराधना करनी होगी....ईश्वर स्वयं तुम्हें सत्यज्ञान से अवगत कराएंगे....और तुम जानोगे कि ब्रह्मामृत का सरोवर अपनी आत्मा मे ही बह रहा है... अतः डुबकी लगाने को अंदर जाना होगा...बाहर ये सरोवर है ही नहीं ...... और जिस दिन उधर जाने की भावना अन्तःकरण में बलवती होगी....तब तुम्हारे विकार स्वतः नष्ट होने लगेंगे....विकार नष्ट होने पर शुद्ध हो तुम शीघ्र ही उस अविनाशी परमात्मा के हो जाओगे

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