संसार में तीन प्रकार के पुरुष है - देव , मनुष्य और असुर
इन तीन प्रकार के पुरुषो में - देवपुरुष श्रेष्ठ होता है , मनुष्य साधारण और असुर निकृष्ट होते है ।
देव वह है जो निर्दयी नहीं होते , दूसरों के कष्ट दूर करते है , वैदिक धर्म के पालन से उनका आत्मा उच्च हो जाता है और वेदो के ज्ञान को जानकर , वेदवर्णित ईश्वर की उपासना करके , यज्ञ करके वे देवता बन जाते है ।
असुर वे है जो अपने लाभ के सामने दूसरे के लाभ की परवाह नहीं करते। स्वार्थसिद्धि मे लगे रहते है और दूसरे की हानि करके अपना पेट भरते है। जैसे एक कसाई पशुओ को काटकर प्रसन्नता से बेचता है। यह कसाई का असुरपन है । ऐसे ही मनुष्य अपने स्वाद के लिए एक पक्षी की गर्दन मरोड़ देता है और निरीह पशुओ को मारकर खाता है, यह है उस मनुष्य का असुरपन । कोई एक जाति अपने त्योहारो के नाम पर लाखो बकरो आदि को काटकर खा जाति है ये है उस जाति का असुरपन ।
रावण के सीताहरण के समय कब सीता जी के कष्टो की परवाह की थी ? दुर्योधन ने भरी सभा मे द्रौपती को अपमानित करके अपने असुरपन का ही परिचय दिया था। दरअसल निर्दयता एक मानसिक रोग है , असुरपन का कारण है ।
अब आप सोचिए क्या बनना चाहते है ? देवपुरुष या साधारणमनुष्य या असुर
हमारे वेदो की आज्ञा है कि -- पहले मनुष्य बनो , मतलब प्रेम दया परोपकार आदि गुणो को धारण करो , वेदो के ज्ञान को जानो और फिर उसका पालन करके देव बनो।
इन तीन प्रकार के पुरुषो में - देवपुरुष श्रेष्ठ होता है , मनुष्य साधारण और असुर निकृष्ट होते है ।
देव वह है जो निर्दयी नहीं होते , दूसरों के कष्ट दूर करते है , वैदिक धर्म के पालन से उनका आत्मा उच्च हो जाता है और वेदो के ज्ञान को जानकर , वेदवर्णित ईश्वर की उपासना करके , यज्ञ करके वे देवता बन जाते है ।
असुर वे है जो अपने लाभ के सामने दूसरे के लाभ की परवाह नहीं करते। स्वार्थसिद्धि मे लगे रहते है और दूसरे की हानि करके अपना पेट भरते है। जैसे एक कसाई पशुओ को काटकर प्रसन्नता से बेचता है। यह कसाई का असुरपन है । ऐसे ही मनुष्य अपने स्वाद के लिए एक पक्षी की गर्दन मरोड़ देता है और निरीह पशुओ को मारकर खाता है, यह है उस मनुष्य का असुरपन । कोई एक जाति अपने त्योहारो के नाम पर लाखो बकरो आदि को काटकर खा जाति है ये है उस जाति का असुरपन ।
रावण के सीताहरण के समय कब सीता जी के कष्टो की परवाह की थी ? दुर्योधन ने भरी सभा मे द्रौपती को अपमानित करके अपने असुरपन का ही परिचय दिया था। दरअसल निर्दयता एक मानसिक रोग है , असुरपन का कारण है ।
अब आप सोचिए क्या बनना चाहते है ? देवपुरुष या साधारणमनुष्य या असुर
हमारे वेदो की आज्ञा है कि -- पहले मनुष्य बनो , मतलब प्रेम दया परोपकार आदि गुणो को धारण करो , वेदो के ज्ञान को जानो और फिर उसका पालन करके देव बनो।
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