ज्वालामुखी एक शक्तिपीठ है जहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी. सभी शक्तिपीठों में यह शक्तिपीठ अनोखा इसलिए माना जाता है कि यहाँ ना तो किसी मूर्ति की पूजा होती है ना ही किसी पिंडी की, बल्कि यहाँ पूजा होती है धरती के अन्दर से निकलती ज्वाला की. इस ज्वाला का मुख्य स्त्रोत कहां है, इसकी जानकारी अभी तक वैज्ञानिकों के पास भी उपलब्ध नहीं है. यहां ज्वाला निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं है.
धरती के गर्भ से यहाँ नौ स्थानों पर आग की ज्वाला निकलती रहती है. इन्ही पर मंदिर बना दिया गया है और इन्ही पर प्रसाद चढ़ता है. इस ज्वाला के विषय में एक किवदंती के अनुसार अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती 'ऊर्जा' का इस्तेमाल किया जाए.
लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस 'ऊर्जा' को नहीं ढूंढ पाए. अंत में उन्होंने घोषित किया कि यहाँ ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से.
धरती के गर्भ से यहाँ नौ स्थानों पर आग की ज्वाला निकलती रहती है. इन्ही पर मंदिर बना दिया गया है और इन्ही पर प्रसाद चढ़ता है. इस ज्वाला के विषय में एक किवदंती के अनुसार अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती 'ऊर्जा' का इस्तेमाल किया जाए.
लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस 'ऊर्जा' को नहीं ढूंढ पाए. अंत में उन्होंने घोषित किया कि यहाँ ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से.
the potery based on the javala devi mata
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