किसी भी कार्य की सफलता उसके परिश्रम पर निर्भर करता है। परिश्रम एक प्रकार का तप ही है। जैसे भट्टी में धातु को पिघलाकर उसे स्वच्छ और प्रयोग योग्य बनाया जाता है, वैसे अपनी इस आत्मा को योग, आसन, प्राणायाम रूपी भट्टी में तपाकर स्वच्छ कर परब्रह्म को प्राप्त किया जाता है।
बिना धर्माचरण के परमात्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। तप परमात्मा को प्राप्त करने का एक अचूक साधन है। जिसके जीवन में तप नहीं, वह संसार का कोई कार्य नहीं कर सकता, परमात्मा को प्राप्त करना तो दूर की बात है।
जो परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भक्ति को साधन बनाते हैं, वह भी एक प्रकार का तप ही है।
जो परमात्मा को प्राप्त करने के लिए ज्ञान को साधन बनाते है, वह भी एक प्रकार का तप ही है।
कहने का अभिप्राय यही है कि परमात्मा को तप से ही प्राप्त किया जा सकता है।
बिना धर्माचरण के परमात्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। तप परमात्मा को प्राप्त करने का एक अचूक साधन है। जिसके जीवन में तप नहीं, वह संसार का कोई कार्य नहीं कर सकता, परमात्मा को प्राप्त करना तो दूर की बात है।
जो परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भक्ति को साधन बनाते हैं, वह भी एक प्रकार का तप ही है।
जो परमात्मा को प्राप्त करने के लिए ज्ञान को साधन बनाते है, वह भी एक प्रकार का तप ही है।
कहने का अभिप्राय यही है कि परमात्मा को तप से ही प्राप्त किया जा सकता है।
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