Saturday, 24 May 2014

अहं ब्रह्माsस्मि

जीवात्मा परमात्मा के स्वरूप को जानने से उसके गुणों को धारण कर लेता है। जैसे लोहे के गोले को हम अग्नि में डाल दें तो वह अग्निरूप हो जाता है, किन्तु अग्नि नहीं होता, अपितु अग्नि के समान हो जाता है। यही स्थिति परमात्मा को जानने वाले जीवात्मा की होती हैवह परमात्मा (अकामः) कामनारहित है। जैसे सांसारिक व्यक्तियों की कामनाएँ होती हैं, वैसी उसकी कोई कामना नहीं है। वह (धीरः) धैर्यशाली है। (अमृतः) अमर है, (रसेनतृप्तः) आनन्द व शक्ति से तृप्त है, (कुतश्चनोनः कुतः-चन-ऊन-न) उसमें कहीं से भी कोई कमी नहीं है। उस धीर अजर, अमर युवा (महाबली) परमात्मा को जानता हुआ मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता है।

अतः वेद भगवान् के अनुसार मृत्यु से बचने का एक उपाय यही है कि हम परमात्मा के स्वरूप को समझें और उसे हृदयंगम करने का प्रयत्न करें।

 परमात्मा के स्वरूप के विषय में बताया है। परमात्मा के इन्हीं स्वरूप का प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए।

इससे परमात्मा के गुण साधक में आ जाते हैं, जिससे साधक परमात्मा जैसा हो जाता है और वह कह उठता हैः--"अहं ब्रह्माsस्मि।"

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