Wednesday 15 April 2015

यह बात भी बुध्दि के पल्ले नहीं पड़ती


भौतिक जगत् की कई शक्तियां ऐसी हैं, जिन्हें प्रत्यक्ष नेत्रों द्वारा नहीं देखा जा सकता। विद्युत शक्ति स्वयं अदृश्य रहती है। आंखों से न दिखते हुए भी उसके अस्तित्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्ब में प्रकाश फैलाती, पंखे से हवा बिखेरती, हीटर से गर्मी देती तथा विशालकाय मशीनों, कारखानों को चलाने के लिये ऊर्जा देती, बिजली अपनी सत्ता का परिचय देती है। चुंबकीय शक्ति दिखाई नहीं पड़ती, पर प्रचंड आकर्षण शक्ति उसकी सत्ता का बोध कराती है। प्रकाश, ऊर्जा, गर्मी, विद्युत शक्ति के गुणहैं, उसकी प्रतिक्रियाएं हैं, मूल स्वरूप नहीं। मूल स्वरूप तो अभी तक परमाणु की सत्ता की भांति विवादास्पद बना हुआ है। गुणों का बोध ज्ञानेंद्रियों द्वारा होता है। नेत्रों में ज्योति न होने पर न तो प्रकाश दिखाई पड़ सकता है और न ही पंखे का चलना दृष्टिगोचर हो सकता है। आंख के साथ शरीर की त्वचा भी अपनी संवेदना क्षमता गवां बैठे, तो जिन्होंने कभी विद्युत शक्ति की सामर्थ्य नहीं देखी है, उनके लिये बिजली की सत्ता का अस्तित्व संदिग्ध ही बना रहेगा। यही बात चुंबक के साथ भी लागू होती है।
खाद्य पदार्थों के गुण-धर्म
पृथ्वी का गुरुत्व बल प्रत्यक्ष कहां दिखता है? वस्तुओं के नीचे गिरने से अनुमान लगाया जाता है कि उसमें कोई ऐसी आकर्षण शक्ति है, जो वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। यही वह प्रमाण है, जिसके आधार पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति की उपस्थिति को स्वीकारना पड़ता है। ऐसी कितनी ही शक्तियां हैं, जो नेत्रों से नहीं दिखाई पड़तीं, किन्तु उनका अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता। फूल में सुगंध होती है, यह सर्वविदित है। गंध को नेत्र कहां देख पाते हैं। घ्राणेद्रियों द्वारा गंध की मात्र अनुभूति होती है। उनमें सौंदर्य होता है, जो हर किसी को मुग्ध करता है। सौंदर्य की होने वाली अनुभूति को किस रूप में प्रत्यक्ष दिखाया जा सकता है? फूल की सुगंध एवं सौंदर्य की अनुभूति, घ्राण शक्ति एवं नेत्र ज्योति से रहित व्यक्ति नहीं कर सकता। ऐसे व्यक्तियों द्वारा उसकी विशेषता से इंकार करने पर भी तथ्य अपने स्थान पर यथावत बना रहता है।
खाद्य पदार्थों के गुण-धर्म उनके भीतर सन्निहित होते हैं। उनके स्वाद को देखा नहीं जाता, स्वादेद्रिंय के ठीक रहने पर मात्र अनुभव किया जा सकता है। जिनकी जिव्हा जन्म सेही रोग ग्रस्त हो, स्वाद का अनुभव नहीं कर पाती हो, उनके लिये यह आश्चर्य, अविश्वास एवं कौतूहल का विषय बना रहेगा कि वस्तुओं में स्वाद भी होता है। जिह्वा से अनुभूति होते हुए भी स्वाद के मूल स्वरूप का दर्शन कर सकना सर्वथा असंभव है। गंध का वास्तविक रूप कैसा होता है, यह दृष्टिगम्य नहीं अनुभूति गम्य है।
विविध प्रकार की भौतिक शक्तियों का परिचय उनके गुण-धर्मों, विशेषताओं के आधार पर मिलता है और यह भी तभी संभव है, जब ज्ञानेंद्रियां उनकी विशेषताओं-संवेदनाओं को ग्रहण न कर पाने में सक्षम हों। इतने पर भी उनके मूल स्वरूप का दर्शन कर पाना न तो अब तक संभव हुआ है और न ही निकट भविष्य में संभावना ही है, क्योंकि शक्ति का कोई स्वरूप नहीं होता। लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई, रूपी प्रत्यक्ष मापदंड की सीमा में वस्तुएं आती हैं, शक्तियां नहीं। इस तथ्य को कोई भी विज्ञ, विचारशील, तार्किक अथवा वैज्ञानिक भी मानने से इंकार नहीं कर सकता।
परमात्मा वस्तु अथवा व्यक्ति नहीं, जो इन स्थूल नेत्रों से देखा जा सके। वह एक सर्वव्यापक शक्ति है, जो जड़-चेतन सभी में समायी हुई है। उसी को प्रेरणा से सभी चेतन प्राणी गतिशील हैं। सृष्टि के प्रत्येक घटक में सुव्यवस्था, नियम एवं ससंचालन का होना इस बात का प्रमाण है कि किसी सर्वसमर्थ अदृश्य हाथों में इसकी बागडोर है। यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए, तो लघु परमाणु से लेकर विशाल ब्रह्माण्ड तक में उसी की सत्ता क्रीड़ा-कल्लोल कर रही है। सामान्य कृतियों के लिये भी कितना अधिक श्रम, पुरुषार्थ एवं बुध्दि का नियोजन करना पड़ता है। छोटे-बड़े यंत्रों का निर्माण एवं सुसांचलन अपने आप नहीं हो जाता। सर्वविदित है कि मनुष्य को कितना अधिक नियंत्रण रखना पड़ता है, तब कहीं जाकर यंत्र अभीष्ट प्रयोजन पूरा कर पाता है। यह तो मनुष्य द्वारा विनिर्मित सामान्य कृतियों की बात हुई। विशाल सृष्टि अपने आप बनकर तैयार हो गयी और स्वसंचालित है, यह बात भी बुध्दि के पल्ले नहीं पड़ती।

No comments:

Post a Comment