Thursday 16 April 2015

व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त करलेता है

अद्भुत जानकारी मूलाधार चक्र यह शरीर का पहला चक्र है।गुदा और लिंग के बीचचार पंखुरियों वाला यह "आधार चक्र" है।99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती हैऔर वेइसी चक्र में रहकर मर जाते हैं।जिनके जीवन में भोग,संभोग और निद्रा की प्रधानता है,उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।मंत्र : "लं"चक्र जगाने की विधि:-मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र मेंजी रहा है.!इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इसचक्र परलगातार ध्यािन लगाने से यह चक्र जाग्रत होनेलगता है।इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है NIयम.और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।प्रभाव :इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतरवीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रतहो जाता है।सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता,निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।  2. स्वाधिष्ठान चक्र- यह वह चक्र है,जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है,जिसकी छ: पंखुरियां हैं।अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है,तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी।यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीतहो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगाऔर हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।मंत्र : "वं"कैसे जाग्रत करें :जीवन में मनोरंजन जरूरी है,लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं।मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी मेंधकेलता है।फिल्म सच्ची नहीं होती.लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपकेबेहोश जीवन जीने का प्रमाण है।नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।प्रभाव :इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद,अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है।सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारेदुर्गुण समाप्त हो,तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।  3. मणिपुर चक्र नाभि के मूल में स्थितरक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत "मणिपुर" नामकतीसरा चक्र है,जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है।जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित हैउसे काम करने की धुन-सी रहती है।ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं।ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।मंत्र : "रं"कैसे जाग्रत करें :आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इसचक्र पर ध्यान लगाएंगे।पेट से श्वास लें।प्रभाव :इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय,घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं।यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है।सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होनाजरूरी है।आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी हैकि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवनका कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।    4. अनाहत चक्र- हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमलकी पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों सेसुशोभित चक्र ही "अनाहत चक्र" है।अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है,तो आप एक सृजनशीलव्यक्ति होंगे।हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं।आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियरआदि हो सकते हैं।मंत्र : "यं"कैसे जाग्रत करें :हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने सेयह चक्र जाग्रत होने लगता है।खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यानलगाने से यहअभ्यास से जाग्रत होने लगता है और "सुषुम्ना"इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।प्रभाव :इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क,चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकारसमाप्त हो जाते हैं।इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम औरसंवेदना का जागरण होता है।इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत:ही प्रकट होने लगता है।व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त,सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मकरूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं।ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थके मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।  5. विशुद्ध चक्र-  कंठ में सरस्वती का स्थान है,जहां "विशुद्ध चक्र" है और जो सोलहपंखुरियों वाला है।सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र केआसपास एकत्रित है,तो आप अति शक्तिशाली होंगे।मंत्र : "हं"कैसे जाग्रत करें :कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रतहोने लगता है।प्रभाव :इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं औरसोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है।इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यासको रोका जा सकता हैवहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।   6. आज्ञाचक्र  भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में "आज्ञा-चक्र" है।सामान्यतौर पर जिसव्यक्ति की ऊर्जा यहांज्यादा सक्रिय है,तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील औरतेज दिमाग का बन जाता हैलेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है।"बौद्धिक सिद्धि" कहते हैं।मंत्र : "ऊं"कैसे जाग्रत करें :भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने सेयह चक्र जाग्रत होने लगता है।प्रभाव :यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं।इस "आज्ञा चक्र" का जागरण होने से ये सभीशक्तियां जाग पड़ती हैं,और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।  7. सहस्रार चक्र :"सहस्रार" की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में हैअर्थात जहां चोटी रखते हैं।यदि व्यक्ति यम, नियमका पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वहआनंदमय शरीर में स्थित हो गया है।ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोईमतलब नहीं रहता है।कैसे जाग्रत करें :"मूलाधार" से होते हुए ही "सहस्रार" तकपहुंचा जा सकता है।लगातार ध्यान करते रहने से यह "चक्र" जाग्रतहो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त करलेता है।प्रभाव :शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीयऔर जैवीय विद्युत का संग्रह है।यही "मोक्ष" का द्वार है ।

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