Monday 13 April 2015

शब्दकी एक अद्भुत सामर्थ्य इसलिये मानी गई है जिससे वह अर्थों का ज्ञान करा देता है ।प्राचीनकाल से इसीलिए हम लोग शब्द के विषय में बड़ा विचार करते रहे हैं । मनुष्य केबंधन और मोक्ष , सुख और दुःख का सर्वाधिक कारण शब्द ही है ।हमको जितनी चीज़े याद रहती है वे अधिकतर शब्द के रूप में ही याद रहते हैं । अगरकिसी चीज़ की सुगन्धि को हम यथावत् याद करना चाहें तो प्रतीति नहीं होती , अगर किसी चीज़ का स्पर्श ठीक - ठीक याद करनाचाहें तो याद नहीं आता । दो ही चीज़े हमें स्पष्ट याद आती है - या तो रूप या नाम ।किसी का चेहरा स्पष्ट याद आ जाता है अथवा उसका नाम स्पष्ट याद आ जाता है । स्पर्श ,गंध आदि बाकी चीज़े स्पष्ट भान नहीं होती। अतः उपनिषदों ने जहाँ कहीं संसार का वर्णन किया है , वहाँ " नाम रूपात्मक सृष्टि कही है " यद्यपि यह ठीक है कि रूप शब्द का अर्थ व्यापक है" रूप्यते अनेन " इस व्युत्पत्ति से अंध आदि भी रूप है क्योंकिपदार्थों का निरूपण करते है तथापि मनुष्य के अन्दर यह शक्ति प्रायः कार्यकारी नहींहोती कि गंधादि से किसी का सही निरूपण कर या समझ सके । " आरक्षी विभाग " , " पुलिस डिपार्टमेन्ट " में कुत्ते रखे जाते हैं जो सुगन्ध से चोर कोपकड़ लेते हैं परंतु मनुष्यों में यह शक्ति प्रायः नहीं है ; कदाचित् किसी में हो तो बात दूसरी है , परंतु चेहरा देख लेते है तो सभी पहचान लेते है। इसीलियेयदि बत्ती जल जाए तो चोर को पहचानने जाने का डर होता है जान से भी मार देता है ।परंतु किसी चोर को यह डर नहीं रहता कि मेरी गंध पहचान लेंगे । हमारे एक परिचितसज्जन हमसे कहने लगे स्वामी जी एक अलाती , टार्च अपने पास रखा कीजिए , रात - बिरात कोई आए तो दिख जाए । हमने कहा तुम बीमा बेचे हुए हो हम बीमाबेचे हुए तो हैं नहीं । अगर चोर को पता लग गया कि हमने उसे पहचान लिया है तो वहमार कर जाएगा और अंधेरे में सिर्फ चोरी कर के चला जाएगा , उसको पहचाने जाने का डर नहीं लगेगा तो वह मार - पीट भीनहीं करेगा। गंध , स्पर्श आदि काभय चोर को नहीं होता है रूप का ही डर होता है कि कहीं पहचाना न जाऊँ । इसीलिए रूपमें गन्ध आदि का समावेश होने पर भी मनुष्य की दृष्टि से प्रधानता को मानकर रूप -शब्द का ही प्रयोग करते हैं । नाम और रूप की विशेषता इसीलिए दी गई ।

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