Monday, 7 April 2014

सारे विश्व के विषयों का सुख क्या होता है

योगी जब अकर्त्ता और अभोक्ता पद में स्थित होता है तब उसके सारे कर्म क्षीण हो जाते हैं। ज्ञानी के सारे-के-सारे कर्म प्रकृति में होते हैं, अन्तःकरण में होते हैं, साधनों में होते हैं, आत्मस्वरूप में नहीं होते। वही आत्मस्वरूप जीवमात्र का अपना आपा है। लेकिन कामना और संकल्प करके वह स्वरूप से बाहर भटकता है। आत्मशांतिरूपी खेत को इच्छारूपी ओले बिखेर देते है। अतः जितना हो सके उतना अलग रहकर आत्मदृष्टि से जीना चाहिए। ज्ञानी के सुख के आगे सारे विश्व के विषयों का सुख क्या होता है 

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