हाथ मैं झोला लटकाए एक बुजुर्ग महिला बस मैं चडी,
सीट खाली नही देख वह एक दम से वह निराश हो गयी,
फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि
शायद किसी सीट पर अटकने की जगह मिल जाए,
वह भी पीछे की और चली, तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी ,
उस पर बस एक युवक बैठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ
गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान
नही दिखायी दिया तो उसने धम्म से शरीर को छोड़ दिया सीट
पर,
अरे रे कहाँ बेठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी, युवक बोला.
आंखों मैं उभरी चमक घुप्प से गायब हो गयी ,
आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह
वहीं दो सीटों के बीच गैलरी मैं ही बेठ गयी,
इसके बाद उस खाली सीट को देख कर कईं आंखों मैं चमक
आती रही और बुझती रही,
तभी एक सुन्दर सी दिखने वाली युवती बस मैं चडी ,
अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है,
कोई आएगा, नीचे गया होगा, और वह भी खड़ी हो गयी महिला के
पास,
बैठ जाइये न, यहाँ कोई नही आएगा,
इस आवाज पर युवती ने मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब
था
,उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा,...?
जी नही,...युवक उसी मुस्कान के साथ बोला,
इस पर युवती मुडी और नीचे बैठी उस बुजुर्ग महिला को सीट पर
बैठा दिया...,
अब युवक का चेहरा देखने लायक था,
वह युवती को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था,
"दोस्तों मानव कहलाना ही काफी नहीं होता
हमारे अन्दर मानवता का गुण होना भी आवश्यक है .."
प्रभु जी आपने बिल्कुल ठीक कहा आज की युवा पीडी मैं इतनी सम्झ कहाँ रही है
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