Friday, 25 April 2014

जैसे आप कहोगे


कितना कुछ दिया है हमें ईश्वर ने ..पर तब भी कहते है हे प्रभु आप हम से क्यों नाइंसाफी कर रहे हो? हम तो आपके ही बच्चे है न तो फिर हमको जो चाहिए वो क्यों नहीं मिल रहा क्यों ??? हर किसी को यही शिकायत होती है ..पर भगवान् का भी अपना नियम है ..इसे आप दो तरीके से समझ सकते हो ..भगवान् को आप दो रूप में समझ सकते हो दो रूप में कैसे ???
तो भगवान् को आप प्रतिच्छाया और प्रतिध्वनि के रूप में समझ सकते हो ..आप खड़े हो जाईये आईने के सामने ..जैसे आप कहोगे आप का रूप वैसा ही बोलेगा ..आप उसे घूँसा दिखाओगे वो भी दिखायेगा ..आप उसको क्रोध से बोलोगे वो भी बोलेगा .....पर आप जब उससे कहोगे नमस्कार आप हमारे मित्र है और मुस्कुराओ तो वो भी यही कहकर मुस्कुराएगा ..आईने को भगवान् समझ लो जैसा कर रहे हो वैसा ही वापस मिल रहा है है न ?
तो भगवान् के पास से भी आप की नियत आपका ईमान रबर की गेंद के तरह वापस वैसे ही लौटकर आता है ...फिर भगवान् को मत बोलो ...खुद सोचो तुम क्या दे रहे हो ..जो दे रहे हो वही मिलता है वही .....
उसी प्रकार किसी पहाड़ी के सामने खड़े होकर आवाज दीजिये ..वही वापस लौट के आएगा ..जो हम कहते है वही वापस लौट के आता है न ..तो कहिये हमारे पास जो कुछ भी है हम आपके हवाले करते है ..तो देखना वहा से भी वही आवाज आएगी ...याने जब हम अपना सबकुछ प्रभु को अर्पण कर निर्मल मन से निष्काम कर्म करते है ..भगवान् भी हमें भक्ति के रूप में अपना सबकुछ देते है

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