Friday, 11 April 2014

ज्ञान ओर भक्ति दोनों मैं समानता भी है,,ओर अंतर भी

मुक्ति का साधन ज्ञान है ओर प्रेम का साधन भक्ति
ज्ञान ओर भक्ति दोनों मैं समानता भी है,,ओर अंतर भी,,,श्री राम चरित मानस जी के उतर काण्ड मैं गरुड़ जी व कागभूषुंडी जी के संवाद रूप मैं ज्ञान ओर भक्ति का बड़ा सुन्‍दर विवेचन हुआ है,,, गरुड़ जी पूछते हैं की हे प्रभु,,, संत,, मुनि,,,वेद,,, ओर पुराण,,ज्ञान के समान कुछ भी दुर्लभ नहीं मानते,, फिर आपने लोमश जी के कहने पर भी भक्ति के समान ज्ञान का आदर क्यों नहीं किया ?,,,हे किरपा निधान ज्ञान ओर भक्ति मैं क्या अंतर है,,, सो सा मुझ को कहिये,,,
कहहि सन्त , मुनि, वेद,, पुराना,,
नहीं कछु दुर्लभ, ज्ञान समाना,,
       सोई मुनि तुम सन कहेऊ गोसाईं,,
       नहीं आदरेहु भगती की नाइं,,
ज्ञानही,,भगतही अंतर केता,,
सकल कहहु प्रभु करपा निकेता,,
इस पर कागभूषुंडी जी बोले ज्ञान ओर भक्ति मैं समानता भी है ओर अंतर भी,,,
समानता तो यह है ,की दोनो ही संसार जनित दुख को हर लेते है,,
भगतीही ज्ञानही नहीं कछू भेदा,,
उभय हरहि भव सम्भव खेदा,,,
दुख की समाप्ति दोनो ही एक समान करते हैं,,दोनो ही माया जनित दुखों को सदा के लिये समाप्त कर जीव को जन्म मरन के बँधन से मुक्त कर कर्तार्थ कर देते हैं,,,इस लिये ज्ञान ओर भक्ति मैं कोई भेद नही है,,
अब दोनो का अंतर बताते हैं 
सावधान होकर सुनो,,,
नारी के रूप पर नारी कभी मोहित नहीं होती,,,,,,भक्ति ओर माया दोनो ही नारी जाती की हैं इस लिये माया कभी भी भक्ति की तरफ नही देखती,,, अर्थात भक्ति मैं माया कभी विध्न नहीं डालती,,, ज्ञान पुरुष जाति का होने से माया ज्ञान पर मोहित हो जाती है,, अर्थात ज्ञानी को माया मोहित कर लेती है,, ओर फिर भगवान को भक्ति विशेष प्यारी है
उपमा रहित ओर उपाधि रहित भक्ति जिसके ह्रदय मैं सदेव बिना बाधा के वास करती है उसको देखकर माया लज्जित हो जाती है ओर उस पर अपनी प्रभुता नही चला सकती
जय श्री कृष्णा

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