हे प्रभु ! अब आप किस कारण कृपा नहीं करते ? शरणागतों का पालन करना आपका प्रण है और मेरा प्रण है कि आपके चरण-कमलों को देखकर ही मैं जीऊँगा । जब तक मेरे और आपके बीच दीन और दयालु अथवा सेवक और स्वामी का नाता नहीं बना था, तब तक जो दुःख उठाने पड़े थे, उन्हें मैंने आप से नहीं कहा , यद्धपि आप तो अन्तर्यामी हैं (ह्रदय की बात जानते हैं) । पर अब तो मेरा और आप का सम्बन्ध हो गया है । आप उदार हैं और मैं दीन हूँ, आप पतितपावन हैं और मैं पतित हूँ, ऐसा वेद भी कहते हैं । हे प्रभु ! मेरे और आपके बीच बहुत से सम्बन्ध हैं; अब आप मुझे त्याग नहीं सकते । आप ही मेरे पिता, माता, गुरु, भाई, मित्र, स्वामी और सब तरह से हित करने वाले हो । इसलिए कुछ उपाय सोचें जिससे मैं द्वैत रूपी अँधेरे कुएँ में न गिरूँ । हे कमलनयन ! आपकी अपार करूणा संसार के भरी भय को दूर करने वाली है । तुलसीदास जी कहते हैं कि हे प्रभु ! जब तक आपके स्वरुप का प्रकाश ह्रदय में नहीं आता, तब तक संसार का भ्रम कभी टाले नहीं टल सकता ।
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