बरसे तो भर दे जल जंगल आकाश मैं सागर कहीं नहीं
हर अपराधी को दंड देता उसकी लगी कचहरी कहीं नहीं
हर भूखे को अन्न देता उसके लगे भंडारे कहीं नहीं
हर दिल मैं वोह बस्ता है उसका ठोर टीकाना कहीं नहीं
हर अपराधी को दंड देता उसकी लगी कचहरी कहीं नहीं
हर भूखे को अन्न देता उसके लगे भंडारे कहीं नहीं
हर दिल मैं वोह बस्ता है उसका ठोर टीकाना कहीं नहीं
No comments:
Post a Comment