जीव बार बार एसा ही करता है जेसे पतन्गा दीपक से प्रेम करके अग्नि से भी डरता नहीं है ज्ञान विचार के दीपक से मनुष्य प्रत्यक्ष यह देखते हुए की संसार दुखों से पूरण कुंआ है फिर भी उसी मैं गिरता है , यह मूर्ख प्राणी काल रूपी सर्प ही रजो गुण एवम् तमोगुण रूपी विष ज्वाला से कियू जलता रहता है ,, ( कियू की दुखदायी राजस ओर तामस कर्म करता है) शस्त्र प्रतिकूल वाद विवादमयी जो बहुत मत मतान्तर है उनका समर्थन करने के लिय नाना प्रकार के वेश धारण करता है इस प्रकार भ्रम मैं पड़कर भटकते हुए जीवन के सब दिन रात बीत जाते हैं पर कोई काम सफल नहीं होता संसार सागर अगम्य है, अनेक प्रकार के साधन उपायों की नोका बनाकर हठ पूर्वक मनुष्य नवीन कर्म रूपी भार हीडॉता है यदि जीव श्री कृष्ण जी का भजन सच्चे मन से करे तो संसार सागर से पार हो ही जाय इस मैं कोई सन्श्ये ही कहीं रह जाता
जय श्री कृष्णा
जय श्री कृष्णा
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