Tuesday, 1 April 2014

वह चाहे तो पानी मैं भी आग लगा देता है

अविगत प्रमात्मा की गति जानी नहीं जाती, मन वचन ओर कर्म से वह अगम्य ओर अगोचर है, बुद्धि किस प्रकार  उनमे  प्रवेश करे,, अत्यन्त प्रचंड पुरषार्थ ओर बल पाकर भी सिंह भूखा मरता है ओर बिना प्रयास तथा बिना उध्योग किये अजगर अपना पेट भर लेता है,,, वही लीलामय जो खाली है, उन्हें भर देता है ,ओर भरे हूय हो फिर खाली कर देता है,, भगवान की इच्छा से तिनका भी पानी मैं डूब जाता है ओर उनकी इच्छा से पत्थर भी पानी मैं तेरने लगता है,,, कभी वह बहुत उँची भूमि को भी समुंद्र बना डालता है,, कभी उसके चारों ओर पानी भर देता है ,वह पत्थरों के भीतर भी कमल खिला देता है, भगवान की  इच्छा से समुंद्र मैं भी लावा फूटने लगता है ( वह चाहे तो पानी मैं भी आग लगा देता है,,,, राजा को कंगाल ओर कंगाल को राजा बना देता है,,, यदि भगवान अपनी किरपा करे तो मुझ जेसे पतित को भी एक क्षण मैं भव सागर से पार लगा दे यह तो मेरे प्रभु की इच्छा पर ही सब कुछ निर्भर करता है
जय श्री कृष्णा

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