क्या गुरु का होना ज़रूरी है
भाव यह की यदि शिष्य को ध्यान लगाने या मन मैं कोई धुविधा हो तो वह उस का समाधान किस से पुछेगा ,,,फिर तो उसे भटकना ही पड़ेगा, हमारे पास एसे लोग आते हैं, जिनके गुरु जिवित हैं लेकिन उनकी वहाँ तक पहुँच नहीं है ,यदि किताबों से समाधान मिल सकता तो वेद गर्न्थ उपनिषद् बहुत है
उपाय,,,,
रात का भटका हुआ मुसाफिर दिन निकलने की प्रतीक्षा करता है ओर जब सूर्य निकलता है तो उस प्रकाश मैं उसे बहुत से रास्ते दिखाई देते हैं , तो क्या वह सब रास्तों पर चलेगा,,,यदि चलेगा तो अपनी मंज़िल पर कब ओर केसे पहुँचेगा उस समय उस मुसाफिर को किसी से रास्ता पूछना ही पड़ेगा, यदि बताने वाले ने सही रास्ता बता दिया तो मंज़िल पर पहुँचने मैं देर नहीं लगेगी,,, यदि वह उस रास्ते का जानकार हुआ तो फिर कहना ही क्या ,,,,,ओर यदि वह अंजान हुआ किताबी ज्ञानी हुआ तो भटकना लाजमी है यदि जानकार हुआ तो ,,,,,
बस उसी को गुरु कहते है
जय श्री कृष्णा
भाव यह की यदि शिष्य को ध्यान लगाने या मन मैं कोई धुविधा हो तो वह उस का समाधान किस से पुछेगा ,,,फिर तो उसे भटकना ही पड़ेगा, हमारे पास एसे लोग आते हैं, जिनके गुरु जिवित हैं लेकिन उनकी वहाँ तक पहुँच नहीं है ,यदि किताबों से समाधान मिल सकता तो वेद गर्न्थ उपनिषद् बहुत है
उपाय,,,,
रात का भटका हुआ मुसाफिर दिन निकलने की प्रतीक्षा करता है ओर जब सूर्य निकलता है तो उस प्रकाश मैं उसे बहुत से रास्ते दिखाई देते हैं , तो क्या वह सब रास्तों पर चलेगा,,,यदि चलेगा तो अपनी मंज़िल पर कब ओर केसे पहुँचेगा उस समय उस मुसाफिर को किसी से रास्ता पूछना ही पड़ेगा, यदि बताने वाले ने सही रास्ता बता दिया तो मंज़िल पर पहुँचने मैं देर नहीं लगेगी,,, यदि वह उस रास्ते का जानकार हुआ तो फिर कहना ही क्या ,,,,,ओर यदि वह अंजान हुआ किताबी ज्ञानी हुआ तो भटकना लाजमी है यदि जानकार हुआ तो ,,,,,
बस उसी को गुरु कहते है
जय श्री कृष्णा
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