Wednesday, 23 April 2014

भजन ही भगवान का भोजन है


एक भक्त हुए है जयदेव कवि ; गीत-गोविन्द
उनका बनाया हुआ बहुत सुन्दर संस्कृत-ग्रन्थ
है ! भगवान जगन्नाथ स्वयं उनके ‘गीत-
गोविन्द’ को सुनते थे ;
भक्तों की बात
भगवान् ध्यान देकर सुनते हैं !

एक मालिन थी ;उसको गीत-गोविन्द
का एक पद (धर) याद हो गया ! वह बैगन
तोड़ने जाती तो पद गाती जाती थी !
ठाकुर जी भी उसके पीछे-२ चलते और पद
सुनते !
पुजारी जी मंदिर में देखते हैं
कि ठाकुर जी का वस्त्र फटा हुआ है ; पूछा -
प्रभो आपके यहाँ मन्दिर में रहते हुए यह
वस्त्र कैसे फट गया ? ठाकुर जी बोले -भाई
बैगन के कांटों में उलझकर फट गया !
पुजारी जी ने पूछा -बैगन के खेत में आप
क्यों गये थे ? ठाकुर जी ने बता दिया -
मालिन गीत-गोविन्द का धर
गा रही थी अतः सुनने चला गया ! वह
चलती तो मैं पीछे-२ डोलता था जिससे
कपड़ा फट गया !
ऐसे स्वयं भगवान् भी सुनते है ; क्या भगवान्
के कोई रोग है-पाप है जिसे दूर करने के लिये
वे सुनते हैं ?
नहीं ;फिर भी वे सुनते हैं
क्योंकि भक्त के ह्रदय की गहराईयों से
निसृत भजन ही भगवान का भोजन है !
भगवान् की कथा सुनने के अधिकारी भक्त हैं
ऐसे ही भक्त की कथा सुनने के
अधिकारी भगवान् होते हैं

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