एक बार सूरदास जी कंही जा रहे थे !
चलते-२ मार्ग में एक गढ्ढा आया और
सूरदास जी उसमे गिर गये !गढ्ढे में
किसको पुकारते अतः अपने
कान्हा को पुकारने लगे ;भक्त जो ठहरे !एक
भक्त अपने जीवन में मुसीबत के समय में प्रभु
को ही पुकारता है ;पुकारने लगे -अरे मेरे
प्यारे छोटे से कन्हैया आज तूने मुझे यहाँ भेज
दिया और अब क्या तू यहाँ नहीं आयेगा मुझे
अकेला ही छोड़ देगा !
जिस समय सुरदास जी ने प्रभु को याद
किया तो प्रभु भी उन की पुकार सुने
बिना रह नहीं सके !सच भी है जब एक भक्त
दिल से पुकारा करता है तो यह टीस प्रभु
के दिल में भी उठा करती है !
कान्हा उसी समय एक बाल गोपाल के रूप में
वहाँ प्रकट हो गये ;प्रभु के पांव
की नन्ही-२ सी पेंजनिया जब छन-२
करती हुई सुरदास जी के पास आई
तो सुरदास जी को समझते देर न लगी !
कान्हा उसके समीप आये और बोले -अरे
बाबा नीचे क्या कर रहे हो ?लो मेरा हाथ
पकड़ो और जल्दी से ऊपर चले आओ !जेसे
ही सूरदास जी ने
इतनी प्यारी सी मिश्री सी घुली हुई
वाणी सुनी तो जान गये कि मेरा कान्हा आ
गया है और बहुत प्रसन्न हो रहा है ;कहा -
अच्छा तो बाल गोपाल के रूप में आ
ही गये ;कन्हाई तुम आ ही गये न !
बाल गोपाल कहने लगे -अरे कौन
कान्हा किसका नाम लेते जा रहे
हो जल्दी से हाथ पकड़ो और ऊपर आ
जाओ ;ज्यादा बाते न बनाओ !सूरदास जी ने
मुस्करा कर कहा -सच में
कान्हा तेरी बांसुरी के भीतर
भी वो मधुरता नहीं ;मानता हूँ
कि तेरी बांसुरी सारे संसार
को नचा दिया करती है लेकिन कान्हा तेरे
भक्तो की टेढ़ तुझे नचा दिया करती है !
क्यों कान्हा सच है न तभी तो तू
दौड़ा चला आया !बाल गोपाल कहने लगे -
अरे बहुत हुआ पता नही क्या कान्हा-२
किये जा रहे हो मै तो एक साधारण
सा बाल ग्वाल हूँ मदद लेनी है
तो लो नहीं तो मैं चला फिर पड़े
रहना इसी गढ्ढे में !
जैसे ही इतना कहा सूरदास जी ने झट से
कान्हा का हाथ पकड़ लिया और कहा -
कान्हा तेरा यह दिव्य स्पर्श तेरा यह
सान्निधय यह सूर अच्छी तरह जानता है !
मेरा दिल कह रहा है कि तुम ही मेरे श्याम
ही हो !
जैसे ही चोरी पकडे जाने के डर से
कान्हा भागने लगे तो सूरदास जी ने कहा :
बांह छुडाये जात हो निर्बल जान
जो मोहे ;
ह्रदय से जो जाओगे सबल समझूंगा मैं तोहे !
अर्थात यहाँ से तो भाग जाओगे लेकिन मेरे
दिल की कैद से कभी नहीं निकल पाओगे !
ऐसे थे सूरदास जी प्रभु के भक्त ;धन्य है ऐसे
भक्त जो प्रभु
को भी नचा दिया करते है !
चलते-२ मार्ग में एक गढ्ढा आया और
सूरदास जी उसमे गिर गये !गढ्ढे में
किसको पुकारते अतः अपने
कान्हा को पुकारने लगे ;भक्त जो ठहरे !एक
भक्त अपने जीवन में मुसीबत के समय में प्रभु
को ही पुकारता है ;पुकारने लगे -अरे मेरे
प्यारे छोटे से कन्हैया आज तूने मुझे यहाँ भेज
दिया और अब क्या तू यहाँ नहीं आयेगा मुझे
अकेला ही छोड़ देगा !
जिस समय सुरदास जी ने प्रभु को याद
किया तो प्रभु भी उन की पुकार सुने
बिना रह नहीं सके !सच भी है जब एक भक्त
दिल से पुकारा करता है तो यह टीस प्रभु
के दिल में भी उठा करती है !
कान्हा उसी समय एक बाल गोपाल के रूप में
वहाँ प्रकट हो गये ;प्रभु के पांव
की नन्ही-२ सी पेंजनिया जब छन-२
करती हुई सुरदास जी के पास आई
तो सुरदास जी को समझते देर न लगी !
कान्हा उसके समीप आये और बोले -अरे
बाबा नीचे क्या कर रहे हो ?लो मेरा हाथ
पकड़ो और जल्दी से ऊपर चले आओ !जेसे
ही सूरदास जी ने
इतनी प्यारी सी मिश्री सी घुली हुई
वाणी सुनी तो जान गये कि मेरा कान्हा आ
गया है और बहुत प्रसन्न हो रहा है ;कहा -
अच्छा तो बाल गोपाल के रूप में आ
ही गये ;कन्हाई तुम आ ही गये न !
बाल गोपाल कहने लगे -अरे कौन
कान्हा किसका नाम लेते जा रहे
हो जल्दी से हाथ पकड़ो और ऊपर आ
जाओ ;ज्यादा बाते न बनाओ !सूरदास जी ने
मुस्करा कर कहा -सच में
कान्हा तेरी बांसुरी के भीतर
भी वो मधुरता नहीं ;मानता हूँ
कि तेरी बांसुरी सारे संसार
को नचा दिया करती है लेकिन कान्हा तेरे
भक्तो की टेढ़ तुझे नचा दिया करती है !
क्यों कान्हा सच है न तभी तो तू
दौड़ा चला आया !बाल गोपाल कहने लगे -
अरे बहुत हुआ पता नही क्या कान्हा-२
किये जा रहे हो मै तो एक साधारण
सा बाल ग्वाल हूँ मदद लेनी है
तो लो नहीं तो मैं चला फिर पड़े
रहना इसी गढ्ढे में !
जैसे ही इतना कहा सूरदास जी ने झट से
कान्हा का हाथ पकड़ लिया और कहा -
कान्हा तेरा यह दिव्य स्पर्श तेरा यह
सान्निधय यह सूर अच्छी तरह जानता है !
मेरा दिल कह रहा है कि तुम ही मेरे श्याम
ही हो !
जैसे ही चोरी पकडे जाने के डर से
कान्हा भागने लगे तो सूरदास जी ने कहा :
बांह छुडाये जात हो निर्बल जान
जो मोहे ;
ह्रदय से जो जाओगे सबल समझूंगा मैं तोहे !
अर्थात यहाँ से तो भाग जाओगे लेकिन मेरे
दिल की कैद से कभी नहीं निकल पाओगे !
ऐसे थे सूरदास जी प्रभु के भक्त ;धन्य है ऐसे
भक्त जो प्रभु
को भी नचा दिया करते है !
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