Wednesday, 23 April 2014

श्री राम सेतु की ऐतिहासिकता

श्री राम सेतु की ऐतिहासिकता

भारत का एक लम्बा व
गौरवशाली इतिहास रहा है।
हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ रामायण,
महाभारत, पुराण आदि मे
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
द्वारा श्रीलंका पर चढाई के समय रामसेतु
निर्माण का स्पष्ट उल्लेख है।

रामायण काल
वेदिक ग्रंथो के पश्चात
वाल्मीकि रामायण सबसे प्राचीनतम ग्रंथ
है।

इस ग्रंथ मे उल्लेख है कि श्रीराम
की सेना लंका के विजय अभियान पर चलते
समय जब समुद्र तट
पर पहुची तब विभीषण के परामर्श पर
समुद्र तट पर डाब के आसान पर लेटकर
भगवान राम ने समुद्र से मार्ग देने
का आग्रह किया था। महाभारत मे भी इस
घटना का उल्लेख है।

रामेश्वरम मे आज भी प्रभु श्रीराम चन्द्र
की शयन मुद्रा मूर्ति है। समुद्र से
रास्ता मांगने के लिए यहीं पर रामचंद्र
जी ने तीन दिन तक प्राथना की थी।
भारत के दक्षिण मे
धनुष्कोती तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम
मे पम्बन के मध्य ३५ किमी चोडा समुद्र मे
पट्टी के रूप मे उभरा भू भाग ही वह
रामसेतु है, जिसे ईसाईयों ने अड़म्स ब्रिज
और मुसलमानों ने आदम पुल कहा ।
शास्त्रों मे श्रीराम सेतु के आकार के साथ
साथ इसकी निर्माण
प्रक्रिया का भी उल्लेख है।
शोधों के आधार पर
न केवल लोक मान्यताओ
बल्कि पुरातत्वविदों के शोधों से भी यह
सिद्ध हो गया है कि इस सेतु का काल साडे
सत्तर लाख वर्ष पुराना है जो रामायण
काल के समकालीन बैठता है।
भारत सरकार के भू विज्ञान विभाग ने इस
सेतु को मानव निर्मित माना है।
इन्सायक्लोपेडिय ा ब्रिटेनिका मे इस सेतु
का वर्णन इस प्रकार है :- आदम का पुल
जिसे रामसेतु भी कहा जाता है ,
जो कि उत्तरी पश्चिमी श्रीलंका तथा भारत
के दक्षिणी पुर्वी तट से दूर रामेश्वरम के
समीप मन्नार के द्वीपों के मध्य 'उथले
स्थानों की श्रुंखला' है।
नीदरलैंड मे सन १७४७ मे बने मालाबार
बोबन मानचित्र मे रामन कोविल के नाम
से रामसेतु को दिखाया गया है। इस
मानचित्र का १७८८ का संस्करण आज
भी तंजावूर के सरस्वती महल पुस्तकालय मे
उपलब्ध है।
जोसेफ मार्क्स नाम के ऑस्ट्रेलियाई
शोधकर्ता ने इस मानचित्र मे श्रीलंका से
जोड़ने वाले रामसेतु को 'रामार ब्रिज'
कहा है।
अमेरिका के अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान
'नासा' ने उपग्रह से खीचे गए चित्र
१९९३ मे ने दिल्ली के प्रगति मैदान मे
"राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र"
की प्रदर्शनी मे उपलब्ध कराये गए थे।
इनमे श्रीराम सेतु का उपग्रह से
लिया गया चित्र भी था।
यह चित्र नासा ने १४ दिसम्बर १९६६
को जेमिनी -११ से अन्तरिक्ष से प्राप्त
किया था। इसके २२ साल बाद आई.एस.एस
१ ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम
और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर
भूमि पट्टिका का पता लगाया और
उसका चित्र लिया। इससे अमेरिकी उपग्रह
के चित्र की पुष्टि हुई।

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