Saturday, 12 April 2014

जड़ शरीर,, चेतन,, आत्मा,, की गाँठ खुल जाती है

प्रभु जी भगवान की किरपा से सात्विक श्रद्दा रूपी गाय यदि जीव के ह्रध्य मैं आकर बसे ओर जप,, तप,,, व्रत,, नियम,आदिउतम धर्माचरण रूपी घास को चरे,,, फिर शुद्द भाव रूपी बछडड़े को पाकर वह परमार्थ रूपी दूध उतारे,,, निवृति ( नेवना ) होये,,, विशवास बर्तन हो ओर वश मैं रहने वाला मन ही दूध दोहने वाला ग्वाला हो,,,इस प्रकार परमार्थ रूपी दूध को दोहे,,, फिर निश्कामता की अग्नि मैं उसे उबाले,,, तब संतोष ओर क्षमा रूपी हवा से ठण्डा करेवर संयम तथा धेर्य रूपी जामन देकर उसे जमाए,,,,
फिर प्रसनता रूपी मटकी मैं विचार रूपी मचानी को दम रूपी खम्बे से बाँध कर सत्य ओर मीठी वाणी रूपी डोरी से उसे मथे,,ओर अत्यन्त पवित्र वेराग्य रूपी माखन उसमें से निकाल ले,,,,फिर योग रूपी अग्नि प्रकट कर अच्छे बुरे कर्म रूप ईधन लगा से,,,, जब ममता रूपी मेलजल जाये तब शुद्ध बुद्दी रूपी घी को चीत रूपी दीपक मैं डालकर सम द्रष्टी रूपी दीपक बना कर रखे ,, इसके बाद तीनों अवस्थाएं ( जाग्रत ,, स्वप्न,,, सुषुप्ति ) ओर तीनों गुण ( सत्,,,रज़,,,तम ) रूपी कपास से तुरिया अवस्था रूपी रुई निकाल कर सुंदर बती बनाय ,,,,, इस प्रकार तेज पुँज ज्ञान का दीपक जलाए,,, जिसके पास आते ही मद आदि समस्त पतन्गे जल जाएँ,,,,,  ( सोहम ) वह बर्ह्म मैं ही हूँ  यह जो अखण्ड वर्ति है यही उस दीपक की तीक्ष्ण लो है,,,,
जब इस अनुभूति का प्रकाश फेलता है ,,तो सन्सार के मूल रूप भेद ओर भ्रम का नाश हो जाता है  ओर अविधा माया का परिवार आदि का मोह का घोर अन्द्कार दूर हो जाता है,,,तब वही शुद्ध बुद्धि ,, ज्ञान,, रूपी प्रकाश को पा कर हर्ध्ये रूपी घर मैं बेठ कर उस जड़ शरीर,, चेतन,, आत्मा,, की गाँठ खुल जाती है
जय श्री कृष्णा

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