यदि भगवत-प्राप्ति करनी है तो भूलना होगा कि कोई आशीर्वाद दे देगा और प्रभु के दर्शन हो जायेंगे, स्पर्श कर देगा तो ज्ञान हो जायेगा या समाधि लग जायेगी। हाँ, यह संतकृपा से संभव भी है परन्तु यह निष्फ़ल ही रहेगा, इससे कोई स्थायी लाभ नहीं होगा। अपने किये बिना जो कुछ भी प्राप्त होगा, उसका विशेष अर्थ नहीं है। प्रभु को पाने का कोई "शाँर्ट-कट" नहीं है। अपना सर्वस्व समर्पण किये बिना, अपना अस्तित्व मिटाये बिना, प्रभु की प्राप्ति न कभी किसी को हुई है, न होगी। भूल जाना होगा कि हम सब कुछ खाते रहेंगे, सब कुछ करते रहेंगे और ज्ञान, भक्ति अथवा समाधि की अवस्था प्राप्त हो जायेगी। आचरण की शुद्धि अर्थात इन्द्रियों का शास्त्रोक्त संयमित आचरण, आहार की शुद्धि, सत्य एव सदाचरण के बिना किसी भी साधन में सफ़लता नहीं मिल सकती।
भगवद्दर्शन का अर्थ है कि जिसे देखने, सुनने से, अपने तन-मन-प्राण एक अनिवर्चनीय रससिन्धु में डूब जायें, जिस अवस्था में संसार के सारे सुख, भोग, नीरस और बेस्वाद लगने लगें तथा संसार और देह तक कि विस्मृति हो जाये, एक वह ही रह जाये, तब ही समझें कि भगवद्दर्शन हुआ। यह मत समझना के अपनी
हस्ती को मिटाये बिना वह मिल जाएगा
जय श्री कृष्णा
भगवद्दर्शन का अर्थ है कि जिसे देखने, सुनने से, अपने तन-मन-प्राण एक अनिवर्चनीय रससिन्धु में डूब जायें, जिस अवस्था में संसार के सारे सुख, भोग, नीरस और बेस्वाद लगने लगें तथा संसार और देह तक कि विस्मृति हो जाये, एक वह ही रह जाये, तब ही समझें कि भगवद्दर्शन हुआ। यह मत समझना के अपनी
हस्ती को मिटाये बिना वह मिल जाएगा
जय श्री कृष्णा
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