Thursday, 24 April 2014

वैसे ही पश्चात्ताप करोगे

एक वैश्य पुत्र धन कमाने के लिये विदेश गया था । धम कमाकर घर लौटने लगा तो सोचा- धन को साथ लेकर निर्विघ्न घर पहुँचना कठिन है । अतः उसने अपनी कमाई के धन से चार लाल खरीदे और उनको अपनी जंघा को चिरवाकर चारों लाल उसमें रखवा कर टाँका लगवा लिया और अच़्छा होने पर घर को चला । मार्ग में एक घर ठगों का आया । उस ठग की पुत्री को दूसरे को पास छिपे हुये धन को जानने की विद्या आती थी । उसने अपने पिता आदि को बता दिया कि इस व्यक्ति के पास चार लाल हैं । इससे उन्होंने इसका अच़्छा स्वागत सत्कार किया और उसको अपने घर के एक कमरे में रख दिया । रात्रि को उक्त ठग की पुत्री इसके पास घाई और बोली - तुम्हारे पास चार लाल हैं, उनको दे दो नहीं तो तुमको मेरे पिता आदि मार देंगे । वह बोला - मेरे को मार कर के तो जैसे राजा ने तोते को मार करके पश्चात्ताप किया था, वैसे ही पश्चात्ताप करोगे । लड़की ने पू़छा - राजा ने तोते को मार कर पश्चाताप कैसे किया था ? यह कथा मुझे सारी सुनाओ । तब वैश्य पुत्र बोला - एक राजा का पालतू तोता बड़ा बुद्धिमान था । उसे एक अमृत फल प्राप्त हो गया था । उसने वह राजा को देकर खाने को कहा । राजा खाने को तैयार हुआ तब मंत्री ने कहा - पक्षी का लाया हुआ है, अतः परीक्षा करके ही खाना चाहिये और इसकी परीक्षा कल कराना । राजा ने मंत्री की बात मानली । मंत्री तोता से रुष्ट था । कारण ? राजा कभी-कभी मंत्री की बात न मानकर तोता की मानता था । मंत्री ने वैसा ही बनावटी विष फल रात्रि में अमृत फल के स्थान पर रखकर अमृत फल चुरा लिया । दूसरे दिन उस फल का टुकड़ा कुत्ते को खिलाया । उसके खाने से कुत्ता मर गया । तब राजा ने यह सोचकर कि तोता तो मुझे मारना ही चाहता था । राजा ने तोते को मार डाला । मंत्री ने वह अमृत फल अपनी प्यारी वेश्या को दिया । वेश्या ने राजा को भेंट किया । राजा उसे पहचान गया कि यह तो वही अमृत फल है जो तोते ने मुझे दिया था । वेश्या से पू़छा - यह फल तुम्हें किसने दिया ? वेश्या ने कहा - मंत्री ने दिया था । फिर मंत्री को राजा ने कहा - सत्य-सत्य कहो अमृत फल तुमको कहां से मिला है । असत्य कहने से मृत्यु दंड मिलेगा । तब मंत्री ने सत्य कह दिया कि मैंने चुराकर विषफल रक्खा था । यह सुनकर राजा ने पश्चाताप किया था मैंने मेरे भक्त निर्दोष तोते को व्यर्थ ही मार दिया । वैसे ही मेरे को मारकर आप लोग पश्चाताप ही करेंगे ।
दूसरी कथा- लड़की ने कहा- लाल दे दें, नहीं दोगे तब तो मारेंगे ही । वेश्य पुत्र बोला - जैसे एक राजकुमार ने बाज को मारकर पश्चाताप किया था वैसे ही आप लोग मुझे मारकर पश्चात्ताप ही करेंगे । लड़की ने पू़छा - बाज को राजकुमार ने क्यों मारा था ? मुझे पूरी कथा सुनाओ । वैश्य पुत्र बोला । राजकुमार शिकार को गया था । उसके साथ उसका शिकारी बाज भी साथ था । राजकुमार वन में भ्रमण करता -करता थक गया और प्यास से भी व्याकुल हो गया । फिर एक बड़ के वृक्ष के नीचे जाकर बैठा और देखा कि बड़ के वृक्ष से एक-एक बिन्दु पानी गिर रहा है । उसके पास एक प्याला था । जहां बिन्दु पड़ती थी उसके नीचे रख दिया और सो गया । नींद टूटी तब देखा तो प्याला भर गया था । उसे उठाकर राजकुमार पीने लगा तो मुँह से न लगाया उससे पहलेही बाज ने भूमि पर गिरा दिया । राजकुमार प्यास से व्याकुल तो था ही प्याल क्यों गिराया । उसने बाज को मार दिया । फिर उसकी में विचार आया कि बाज तो मेरा हितैषी था उसने प्याला क्यों गिराया । देखू तो सही यह बिन्दु कहां से गिरती है ? फिर राजकुमार ने बड़ पर चढ़कर देखा तो ज्ञात हुआ वह बिन्दु एक विशाल सर्प के मुख से गिर रही थी । यह देखकर राजकुमार ने पश्चाताप किया, कि मैंने मेरे हितैषी निर्दोष बाज को व्यर्थ ही मारा, उसने तो मेरी रक्षा के लिये ही प्याला गिरवाया था । उसे पीनेसे तो मैं अवश्य ही मर जाता । जैसे राजकुमार ने बाज को मारकर पश्चात्ताप किया था, वैसे ही आप लोग मुझे मारकर पश्चात्ताप ही करोगे । इस में क्या संशय है ?
तीसरी कथा - ठग की पुत्री ने फिर कहा - यदि आप लालें नहीं देंगे तब तो मार ही देंगे । फिर वैश्य पुत्र ने कहा - जैसे बणजारे ने कुत्ते को मार कर पश्चात्ताप किया था वैसे ही आप लोग मुझे मारकर पश्चात्ताप ही करोगे । ठग की पुत्री ने पू़छा - बणजारे ने कुत्ते को क्यों मारा था ? मुझे सारी कथा सुनाओ । वैश्य पुत्र बोला - एक बणजारे को धन की आवश्यकता हुई तब वह अपने परम बुद्धीमान कुत्ते को साथ लेकर एक नगर सेठ के पास गया और बोला - मुझे इतना धन चाहिये । उस धन के बदले में मैं मेरा यह परम बुद्धिमान कुत्ता आपके पास रख जाता हूँ । यह जैसे हमारी रक्षा करता था, वैसे सदा आपकी रक्षा करेगा । फिर मैं आपका धन पूरा दे जाऊंगा तब इसे ले जाऊंगा । सेठ ने मान लिया और धन देकर कुत्ता रख लिया । पांच - सात दिन बाद ही सेठ के यहां चोर घुस गये और भारी धन राशि निकाल कर चल दिये । उनके पी़छे उक्त कुत्ता छिपकर चला । चोरों ने सोचा - इतनी धन राशि धरों तक ले चलें, इतनी रात नहीं रही है । मार्ग में ही सूर्योदय हो जायगा । अतः इस धन राशि को यहां के तालाब के गहरे पानी में रख चलें । फिर इसकी खोज समाप्त हो जाने पर एक रात्रि को निकालकर ले चलेंगे ।
फिर उन लोगों ने तालाब के गहरे पानी में धनराशि को रख दी और चल दिये । प्रातः सेठ के यहां चोरी होने का हल्ला हुआ । बहुत लोग एकत्र हो गये । उक्त कुत्ता सेठ की धोती अपने मुख से पकड़कर खेंचता है, उसे देखकर एक विचारशील व्यक्ति ने कहा - इस कुत्ते के साथ चलें यह क्या कहता है तब सब कुत्ते के पी़छे-पी़छे चले । कुत्ते ने तालाब में घुसकर जहां धन रखा था, वहां जाकर अपनी गर्दन से संकेत किया यहां है । खोजियां ने भी कहा - चोर तालाब में घुसे हैं फिर सेठ के मानवों ने गोता लगाकर देखा तो सब धन मिल गया सब निकाल लाये । फिर सेठ ने बणजारे को पत्र लिखा कि तुम धन ले गये थे सो सब तुम्हारे कुत्ते से मिल गया है । अब तुम अपने कुत्ते को सँभाल लेना । कुत्ते के गले में उक्त पत्र बाँधकर कुत्ते को कहा - तुम तुम्हारे स्वामी बणजारे के पास चले जाओ । कुत्ता बणजारे के पास पहुँचा । बणजारे ने दूर से देखा तो उसने सोचा - इसने मेरी बात ही खो दी बिन धन दिये पहले ही आ गया । क्रोधित होकर दूर से ही बणजारे ने कुत्ते के गोली मार दी । फिर उसके पास आया तो गले में पत्र बँधा हुआ खोलकर पढ़ा तो ज्ञात हुआ कि यह धन चुकाकर आया है । मैंने इस मेरे परम भक्त बुद्धिमान निर्दोष कुत्ते को व्यर्थ ही मार दिया है । यह सोचकर बणजारे ने बहुत पश्चाताप किया । हे ठगपुत्री ! मुझे मारकर आप लोग भी उक्त बणजारे के समान ही पश्चाताप करेंगे ।
चौथी कथा - ठग की पुत्री ने कहा - लालें देने से ही बचोंगे नहीं तो आप को मार देंगे । वैश्य पुत्र ने कहा - आप मेरे पास तीन पहर से हैं । अच़्छे मानवों के साथ सात पग चलने पर ही मित्रता हो जाती है फिर भी आप मेरे को मरावाओगी तो जैसे मित्रद्रोह सी गीदड़ ने पश्चाताप किया था, वैसे आप भी पश्चाताप ही करेंगी । ठगपुत्री ने कहा - मित्रद्रोह से गीदड़ ने कैसे पश्चाताप किया था ? पूरी कथा मुझे सुनाइये । वैश्य पुत्र बोला - एक मृग और एक काक मित्र थे । एक गीदड़ ने उनसे कहा - मुझे भी मित्र बनालो । फिर तीन मित्र हो गये । एक रात्रि को गीदड़ उक्त दोनों को काकडी, मतीरों की बाड़ी में ले गया । तीनों खा कर चले गये । प्रातः बाडी वाले ने मृग और गीदड़ के खोज देखे और बाड़ी में गड़बड़ देखी तो आज उसने जिधर से उक्त पशु आ सकते थे उधर - उधर फेंदे लगा दिये । रात्रि को तीनों आये । रात्रि में काक मृग पर बैठकर ही प्रायः चलता था । गीदड़ तो चालाक था इससे फेंदे से बच गया किन्तु मृग के पग फँदे में बँध गये । काक ने गीदड़ को कहा-मृग के पगों के फँदे तुम अपने दाँतों से काट दो । गीदड़ बोला- मैं गंगाजी गया था तब चमड़े को मुख में लेना़ छोड़ आया था । तब कैसे काटूं ? इस मित्र द्रोह से काक रुष्ट हो गया और काक ने गीदड़ की आँखे फोड दी । फिर काक ने मृग को कहा - जब तक मैं पास बोलता रहूँ तब तक तुम मुरदे के समान पड़े रहना और मैं दूर जाकर बोलूं तब तुम उठकर भाग जाना ।
प्रातः बाड़ी का मालिक आया तो देखा मृग पर बैठा काक बोल रहा है । उसने सोचा - मृग मर गया है । अतः उसने कुल्हाड़े से मृग के पगों के फँदे काट दिये फिर वह कु़छ दूर चला गया तब काक दूर जाकर बोला तब मृग उठकर भागा । उसके पी़छे बाड़ी वाले का कुत्ता भी भागा किन्तु मृग तो हाथ नहीं आया और अंधा गीदड़ हाथ आ गया । तब गीदड़ ने मित्र द्रोह के कारण बहुत पश्चाताप किया था | वैसे ही हे ठग पुत्री मुझे मरवाकर आप भी पश्चाताप ही करेंगी । उक्त लड़की का ठगों ने विवाह इसलिये नहीं किया था कि उसकी विद्या से उन्हें बहुत धन मिलता रहता था । लड़की इतने समय वैश्य पुत्र की बातें भी सुनती रही । वैश्य पुत्र शरीर से भी सुन्दर था और लड़की भी विवाह की इच़्छा करती थी । अतः उक्त लड़की का वैश्य पुत्र से प्रेम हो गया । इससे लड़की ने कहा- आपको मृत्यु से बचाने का एक ही उपाय है, आप मुझे अपने साथ ले चलो । वैश्य पुत्र ने कहा - कैसे साथ ले चलूं । ठग पुत्री ने कहा - वह प्रबन्ध तो सब मैं कर लूंगी । तब वैश्य पुत्र ने कहा - फिर तो आप सहर्ष चलें, मैं अवश्य ले चलूंगा । लड़की ने कहा - हमारे दो ऊंट हैं एक रात्रि में तेज चलता है और एक दिन में तेज चलता है । आप दिन में तेज चलने वाले ऊंट पर जीन करके तैयार हो जायें । मैं जो कीमती धन साथ ले जा सकें सो ले आती हूँ फिर उस पर बैठकर चल देंगे । वैश्य पुत्र ने रात्रि में तेज चलने वाले ऊंट पर जीन कर ली । लड़की धन लेकर आई । जल्दी में ध्यान नहीं रहा बैठकर चल दिये ।
जब सूर्योदय होने पर ऊंट की चाल मंद पड़ी तब लड़की ने कहा- आप रात्रि में तेज चलने वाले ऊंट को ले आये । अब तो वे लोग अपने को आ पकड़ेंगे । वैश्य पुत्र ने पु़छा - फिर कैसे बचेंगे । लड़की ने कहा - यह सामने मार्ग पर विशाल बड़ का वृक्ष आ रहा है वहां चलकर अपन ठहर जायेंगे । वे आयें उससे पहले ही आप बड़ पर चढ़ जाना । वैसा ही किया । इतने में पुत्री का पिता और बड़ा भाई आ पहुँचे, लड़की ने रोते हुये कहा - यह मुझे बहकाकर ले आया है और पेड़ पर चढ़ गया है । लड़की ने वैश्य पुत्र को पहले ही समझा दिया था कि आपको पकड़ने बड़ पर चढ़ेगे तब मैं वे जिस पर बैठकर आयेंगे उस ऊंट पर बैठकर बड़ की जो यह नीची साखा है उसके नीचे ले आऊंगी, आप इस साखा से ऊंट पर आ जाना फिर हम उनके हाथ नहीं आयेंगे । वैसा ही किया उनको जाते देखकर बड़ पर से लड़की के पिता ने कहा - ऊंचा चढ़कर नीचे देखे तो यह भी धन लाली के लेखे । फिर वे बड़ से उतरे तब तक वह बहुत दूर चले गये थे । पी़छे ऊंट रहा वह दिन में बहुत धीरे चलता था । 
अतः ठग पुत्री को साथ लेकर वैश्य पुत्र अपने देश को चला आया ,,,,,,, साधक अपने मन रुप ऊंट पर साधन रुप जीन करके अर्थात् मन द्वारा ध्यान करके उक्त वैश्य पुत्र के समान अपनी बुद्धि को ब्रह्मविचार में लगाकर शीघ्र ही अपने निज स्थान ब्रह्मरुप को प्राप्त करे । बुद्धि यदि साथ देगी तो महामोह और उसका पुत्र काम भी पकड़ने का प्रयत्न करके उक्त वैश्य पुत्र के समान वे नहीं पकड़ सकेंगे ।

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