नगर मे एक साधु कुटिया बनाकर रहते थे एक बार उनसे मिलने आए कुछ लोगों ने उनसे पूछा बाबा जी आपके गुरु कौन है इस पर संत बोले एक चोर यह सुनकर वहाँ बैठे सभी लोग हैरान होते हुए बोले क्यों ठिठोली करते हो बाबा तब संत ने जवाब दिया भाई मैं सच कह रहा हूँ मैं बताता हूँ कैसे वह मेरे गुरु बने मे बहुत परेशान रहता था ईश्वर की तलाश मे लगा रहता था बहुत समय तक जब मुझे ईश्वर की भक्ति करने मे हताश हो गया और वापस अपने घर कि और निकल पड़ा तो रास्ते मे रात हो गई तो मैंने वही रात गुजारने की सोची जब मैं ठहरने के लिए जगह तलाश कर रहा था तब कोई भी घर का दरवाजा खूल्ला नही था सभी बंद थे तभी एक आदमी आया और अपने साथ चलने को कहाँ मैंने उससे उसके बारे मे पूछा की तुम कौन हो तब उस चोर ने अपनी सच्चाई मुझे बताई की मैं एक चोर हूँ मुझे उनकी सच्चाई ने बहुत प्रभावित किया और कोई चारा न देख मे उनके साथ उनके घर पहुँच गया साथ मे भोजन किया फिर वह मुझे छोड़कर जाने लगा मैंने पूछा आप कहाँ जा रहे है मुझे अकेला घर पर छोड़कर तब वह बोले क्षमा करे अब मेरे धंधे का वक्त हो गया है आप आराम से सो जाए मैं सुबह तीन चार बजे के बाद लौटूंगा आप दरवाजा लगा ले इसके बाद वह वहाँ से चला गया सुबह उसके लौटने पर मैंने उससे पूछा कही कुछ सफलता मिली की नही वह बोला कि जिस घर मे सेंध मारी उस घर के लोग खुद जरूरतमंद लग रहे थे लिहाजा वहाँ से खाली हाथ ही वापस आना पड़ा कल फिर दूसरी जगह कोशिश करूँगा उसने मुझे महीनों तक अपने पास घर मे रखा मुझे जाने नही दिया वो मेरी सेवा करता रहा पर हर रोज खाली हाथ ही वापस आता और दूसरे रोज कामयाब होने को लेकर मन मे कभी संदेश नही रहा वह हमेशा कहता रहा आज नही तो कल जरूर सफलता मिलेगी संत बोले मैं भी खुदा को खोजने निकाला था और खोज मे भटकते हुए मेरे मन मैं निराशा के भाव थे मगर उस चोर का आशावाद देखकर मुझे लगा कि जब यह बार बार नाकामी मिलने पर भी भी निराश नही हो रहा है तो मैं तो परमात्मा को खोजने निकला हूँ मैं इतनी जल्दी कैसे निराश हो गया अगर मैरी खोज सच्ची है तो मुझे कभी न कभी परमात्मा की अनुभूति जरूर होगी मैं उसके बाद उसे अपना गुरु मान कर वापस परमात्मा को खोजने निकल पड़ा मैं नेकी की राह पर आधे बढ़ता रहा और एक रोज मुझे लगा की मुझे परमात्मा की अनुभूति हो गई चोर से मैंने यह आशा यह हिम्मत सीखी इसलिए मैं उन्हें अपना गुरु कहता हूँ
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