जब तक अपने लिये कुछ भी करने ओर पाने की इच्छा रहती है,,, तब तक सदा साथ ओर रमें हुये प्रमात्मा तत्व का अनुभव
नहीं हो सकता,,,,,
भगवान जी की प्राप्ति केवल तीव्र अभिलाषा से होती है तीव्र अभिलाषा जाग्रत न होने मैं मुख्य कारण संसारिक भोगों की कामना ही है,,,,
भोगों की प्राप्ति सदा के लिये नही होती,, ओर सबके लिये नहीं होती,,परन्तु भगवान की प्राप्ति सदा के लिये ओट सब के लिये होती है,,,भगवान की प्राप्ति के लिये भाव की प्रधानता है,, किसी विशेष साधन की या स्थान क़ि ज़रूरत नही होती,,,,
जाती का या अपने व्रण का अह्न्कारि तो जेसे गंदगी का कीड़ा ही है
यदि कोई चीज़ समान रूप से सबको मिल सकती है तो वह परमात्मा ही है,,,भगवान के सिवाय कोई भी चीज़ समान रूप से सबको नहीं मिल सकती,,,,,,
नहीं हो सकता,,,,,
भगवान जी की प्राप्ति केवल तीव्र अभिलाषा से होती है तीव्र अभिलाषा जाग्रत न होने मैं मुख्य कारण संसारिक भोगों की कामना ही है,,,,
भोगों की प्राप्ति सदा के लिये नही होती,, ओर सबके लिये नहीं होती,,परन्तु भगवान की प्राप्ति सदा के लिये ओट सब के लिये होती है,,,भगवान की प्राप्ति के लिये भाव की प्रधानता है,, किसी विशेष साधन की या स्थान क़ि ज़रूरत नही होती,,,,
जाती का या अपने व्रण का अह्न्कारि तो जेसे गंदगी का कीड़ा ही है
यदि कोई चीज़ समान रूप से सबको मिल सकती है तो वह परमात्मा ही है,,,भगवान के सिवाय कोई भी चीज़ समान रूप से सबको नहीं मिल सकती,,,,,,
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