'ध्यानम निर्विषयं मन:' इसका मतलब है कि चंचल मन शांत हो जाए, मन में कोई विचार, कोई ख्याल न रहे, लेकिन जागरूकता बनी रहे वही ध्यान है ! यहां प्रश्न उठता है कि मन तो गहरी नींद में भी विचारों व ख्यालों से खाली हो जाता है तो क्या वह ध्यान है? यहां समझ लेना होगा कि ध्यान में जागरूकता बनी रहती है लेकिन नींद में ऐसा नहीं होता। तब हम होश में नहीं, बेहोश होते हैं, उसे सुषुप्ति अवस्था कहते हैं, ध्यान नहीं क्योंकि सोना ध्यान नहीं, भीतर से जाग जाना ध्यान है। फिर जीवन उत्सवमय हो जाता है।
ध्यान में इंद्रियां मन के साथ, मन बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरूप आत्मा में लीन होने लगती है। शुरू में ध्यान का अभ्यास आंख बंद करके किया जाता है। फिर अभ्यास बढ़ जाने पर आंखें बंद हों या खुली, साधक अपने स्वरूप के साथ ही जुड़ा रहता है। फिर वह किसी काम को करते हुए भी ध्यान की अवस्था में रह सकता है, श्रीकृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन! उठते, बैठते, सोते, जागते, मेरा ही ध्यान कर। इसी अवस्था तक हमें पहुंचना है। इसके लिए मन को जानना, समझना और उसे काबू में करना बड़ा जरूरी है, वरना मन बड़ा चंचल है। यह आदमी को भटकाता रहता है। इसी भटकते मन को शांत करने के लिए ध्यान का वर्णन योग में किया गया है।
ध्यान में इंद्रियां मन के साथ, मन बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरूप आत्मा में लीन होने लगती है। शुरू में ध्यान का अभ्यास आंख बंद करके किया जाता है। फिर अभ्यास बढ़ जाने पर आंखें बंद हों या खुली, साधक अपने स्वरूप के साथ ही जुड़ा रहता है। फिर वह किसी काम को करते हुए भी ध्यान की अवस्था में रह सकता है, श्रीकृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन! उठते, बैठते, सोते, जागते, मेरा ही ध्यान कर। इसी अवस्था तक हमें पहुंचना है। इसके लिए मन को जानना, समझना और उसे काबू में करना बड़ा जरूरी है, वरना मन बड़ा चंचल है। यह आदमी को भटकाता रहता है। इसी भटकते मन को शांत करने के लिए ध्यान का वर्णन योग में किया गया है।
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