जैसे अग्नि की ज्वाला से जल का ताप बढ्ने लगता है, अग्नि की ज्वाला जितनी विकराल होगी जल भी उतना ही अधिक गरम होता जाएगा अर्थात जल अग्नि के गुण का ग्रहण करता है और अग्नि की ही तरह खुद भी तापयुक्त हो जाता है । ठीक इसी प्रकार ईश्वर का स्मरण करने से या चिंतन करने से हम उनके गुणो का ग्रहण करते हुये विकारो से मुक्त होने लगते है। शास्त्रो मे भी कहा गया है कि --- जिसका चिंतन करे हम उसके गुण या अवगुण के ग्राह्यी हो जाते है, ईश्वर तो सर्वथा सर्वगुणसम्पन्न ही है । ओ३म्
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