जैसे किसी बच्चे का खिलौना टूट जाता है तो वो दुखी हो जाता है और रोने लगता है। क्यो कि बच्चे को यह ज्ञान नहीं है कि -- यह खिलौना हमेशा नहीं रहेगा, इसे टूटना ही है । लेकिन यही खिलौना अगर किसी बड़े व्यक्ति से टूट जाये तो वो बच्चे की तरह दुखी नहीं होता , न ही रोता है । बिलकुल इसी तरह जो आत्मा को नहीं जानते , जो ज्ञानरहित है , वे सांसारिक पदार्थो से आसक्ति के कारण उनके वियोग से दुखी होते है। किन्तु आत्मतत्व को जानने वाला ज्ञानी , संसार की नश्वरता को भली-भांति समझ लेता है , वह जीवन के , अपने और परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को जान लेता है , फिर न उसे शोक होता है , न मोह , न आसक्ति
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