Friday 19 June 2015

मैं आज रात इस सराय में रुकना चाहता हूं

एक राज्य में एक राजा रहता था जो बहुत घमंडी था । उसके घमंड के चलते आसपास के राज्य के राजाओं से भी उसके संबंध अच्छे नहीं थे । उसके घमंड की वजह से सारे राज्य के लोग उसकी बुराई करते थे । एक बार उस गांव से एक साधु महात्मा गुजर रहे थे । उन्होंने भी राजा के बारे में सुना और राजा को सबक सिखाने की सोची । साधु तेजी से राजमहल की ओर गए और बिना प्रहरियों से पूछे सीधे अंदर चले गए । राजा ने देखा तो वह गुस्से में भर गया । 

राजा बोला, ‘‘यह क्या उदंडता है महात्मा जी आप बिना किसी की आज्ञा के अंदर कैसे आ गए?’’ साधु ने विनम्रता से उत्तर दिया, ‘‘मैं आज रात इस सराय में रुकना चाहता हूं ।’’ राजा को यह बात बहुत बुरी लगी वह बोला, ‘‘महात्मा जी यह मेरा राज महल है कोई सराय नहीं, कहीं और जाइए ।’’साधु ने कहा, ‘‘हे राजा, तुमसे पहले यह राजमहल किसका था?’’ राजा, ‘‘मेरे पिता जी का’’ । साधु, ‘‘तुम्हारे पिता जी से पहले यह किसका था ।’’ राजा,‘‘मेरे दादा जी का ।’’ 

साधु ने मुस्कुरा कर कहा, ‘‘हे राजा जिस तरह लोग सराय में कुछ देर रहने के लिए आते हैं वैसे ही यह तुम्हारा राज महल भी है जो कुछ समय के लिए तुम्हारे दादा जी का था, फिर कुछ समय के लिए तुम्हारे पिता जी का था अब कुछ समय के लिए तुम्हारा है । कल किसी और का होगा । यह राज महल जिस पर तुम्हें इतना घमंड है यह एक सराय ही है जहां एक व्यक्ति कुछ समय के लिए आता है और फिर चला जाता है ।’’ साधु की बातों से राजा इतना प्रभावित हुआ कि सारा राजपाट, मान-सम्मान छोड़कर साधु के चरणों में गिर पड़ा और महात्मा जी से क्षमा मांगी और फिर कभी घमंड न करने की शपथ ली । 

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