Monday 29 June 2015

साधक का अंतिम पड़ाव यहीं है

आज्ञा चक्र जागृति से साधक को अनायास अनुपम बाकशक्ति प्राप्त होती है आत्म ज्ञान की उपाधि मिलती है । तथा और प्रगति पथ पर चन्द्र चक्र से अमृत पान कर अमरता सिद्ध होती है । इस मुद्रा में काकी मुद्रा करें तो साधक पवनहारी बनता है । भूख अत्यन्त कम लगते हुए वह अमृतपान , तब पबनाहार करता है । साधक द्वारा खेचरी मुद्रा सिद्ध करने पर तुरियातीत अवस्था में ध्यानस्थ समाधि लग जाती है । जिस पर किसी वातावरण का शरीर के ऊपर प्रभाव नहीँ होता है । विशेषतः साधक जब मुलबन्ध , उड्डियान बँध , तथा जालंधर बँध एक ही समय तीनो बँध लगाकर दीर्घ कुम्भक करते हैं तब इस आज्ञा चक्र में ब्रह्मग्रंथी का भेदन ब्रह्मांड दर्शन होकर आनँद प्राप्त होता है । और अभ्यास होने पर कुण्डलिनी शक्ति सुशुमना में प्रवेश कर उर्ध्वमुखी होती है । और कंठ में विशुद्ध चक्र में स्थिति विष्णु ग्रंथी का भेदन होकर परमानंद की प्राप्ति होती है । और उत्तरोत्तर अभ्यास करने पर आज्ञा चक्र में स्थिति रुद्र ग्रंथी जागृत होने पर केबलानन्द की प्राप्ति होती है । जो कि साधक शव्दो में व्यक्त नहीँ कर सकता । और यहीं चेतना सहस्रागार में जाती है । तो साधक मुक्त हों जाता है । 
इस प्रकार उपरोक्त तीनो बँध लगा कर शाम्भबी मुद्रा में स्थिति आज्ञा चक्र की कुण्डलिनी जब सहस्रागार चक्र या ब्रह्म रंध्र में प्रवेश करती है तो यहाँ मुक्ती मोक्ष का द्वार खुल जाता है । इसे शून्य चक्र भी कहते हैं । इस सहस्रागार का तत्त्व सत्गुरु बीज मन्त्र सत्गुरु मुख से प्राप्त किया हुआ शब्द है । अर्थात साधक को गुरु मन्त्र का जाप करना आवश्यक है । यहाँ साधक को तुर्यातीत अवस्था आती है जब शून्य समाधि में वह लय हों जाता है । तब कुण्डलिनी जब कुण्डलिनी शक्ति इस भ्रमर गुफा में प्रवेश करती है । और ब्रह्मरंध्र खुल जाता है । जेसे ताली से ताला खुलता है । यहाँ वह साधक , वह योगेश्वर ब्रह्मांड - सृष्टि ज्ञान , परम ज्ञान , परमात्मा ज्ञान , परम तत्त्व को प्राप्त हों जाता है । इस साधक को सभी प्रकार की सिद्धियाँ , शक्तियां तथा शाश्वत ज्ञान प्रकाश प्राप्त होता है । वह यहाँ साम्प्रत समाधि - शून्य समाधि लगाकर अपना प्राण अपनी आत्मा को इस सहस्रागार चक्र में स्थिति करता है । और अमर पद पाता है । यहाँ साधक को प्रत्यक्ष शिव साक्षात्कार होता है । नाथ सिद्धों koकौ शिव का गुरु गोरखनाथ जी के रुप में साक्षात्कार होता है । यहाँ मोक्ष मुक्ती का परम पद प्राप्त होता है । यहाँ असंख्य मात्रका , परम गुरु तत्त्व , का सर्वोच्च स्थान में योगी स्थिति होजाता है । इस अवस्था को राज़योग , उन्मनि , मनोन्मयी , अजर अमर , अमरत्व , लय , लीन , अमन्स्क , अद्वित , निरालम्ब , निरालम्ब , निराकार , जीव मुक्ती आदि नामों seसे सम्बोधित करते हैं । साधक का अंतिम पड़ाव यहीं है 

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