Tuesday 2 June 2015

जो तू कहे सब स्वीकार

स्मरण रखना कि जब कोई आयकर अधिकारी अथवा बिक्री-कर अधिकारी जब हमारे व्यापार के हमारे ही द्वारा रखे गये खातों को पकड़ लेता है तो कैसा भय होता है ? उससे बचने के लिये कहाँ-कहाँ भागे-भागे नहीं फ़िरते, किस-किस से अपनी सिफ़ारिश नहीं करवाते। एक वर्ष के पकड़े गये खातों पर लगे जुर्माने को अदा करने तक वर्षों लग जाते हैं और सदैव स्मृति बनी रहती है।
तो अब चिंतन करना है कि इस अमूल्य जीवन का जब श्रीहरि हिसाब माँगेगे तो क्या देंगे ? श्रीहरि ने जीवन दिया, सारी आवश्यकताओं की पूर्ति की, पग-पग पर अनेक रुपों द्वारा प्रत्यक्ष सहायता की। हमने क्या किया ? अपने ही जीवन के लेखे-जोखे में गड़बड़ी के अतिरिक्त !
लोकश्रुति है कि हमारे कर्मों का हिसाब-किताब, महाराज चित्रगुप्त रखते हैं परन्तु दास का व्यक्तिगत मत है कि वे कम से कम हम जैसों का लेखा-जोखा रखने जैसा तिरस्कृत कृत्य कैसे कर सकते हैं सो अब यह भार भी हम पर ही है। हमारे स्वभाव को जानने के कारण श्रीहरि कहते हैं कि यहाँ कोई हिसाब-किताब नहीं रखा जाता है। तू मेरा है सो मुझे तेरा विश्वास है अत: तू मुझे अपना जो भी हिसाब-किताब दिखायेगा, मैं उसे स्वीकार कर लूँगा और तदनुरुप ही तेरे कर्मों के बारे में निर्णय लिया जायेगा ताकि तुम यह न कह सको कि प्रभु, आपके यहाँ तो गड़बड़ चल रही है, ऐसे कर्म तो कभी भी मैंने किये ही नहीं !
सूक्ष्म बात के लिये आज की तकनीक की सहायता लेना चाहता हूँ। मृत्यु के बाद जब सूक्ष्म शरीर जाता है तो इसके साथ सूक्ष्म "पेनड्राइव" भी जाती है, जिसमें हमारे सभी कृत्यों की पूरी "रिकार्डिंग" होती है। हम अपने जीवन में जो भी कर रहे हैं, उसे हम ही रिकार्ड भी करते हैं और यही कारण है कि मृत्यु-पूर्व, हमारे जीवन की पूरी फ़िल्म एक बार हम पुन: देखते हैं क्योंकि अब समय आ गया है कि हमें इसका जबाब देना है। चित्रगुप्त महाराज तो यही कहते हैं कि -"लाओ भैया ! तुम स्वयं द्वारा लिखे गये रिकार्ड ही हमें दे दो ताकि तुम्हारे बारे में उचित निर्णय लिया जा सके"। कैसी अदभुत प्रणाली ! जो तू कहे सब स्वीकार !
जीव अपने ही जाल में फ़ँस जाता है, अब क्या कहे ? किस पर आक्षेप लगावे ? जीवन का काला खाता, स्वयं ही लेकर प्रस्तुत हो गया ! सोचा था कि अपनी तीक्ष्ण-बुद्दि से उनके खातों में कमी निकाल दूँगा, इन्होंने तो निरुत्तर ही कर दिया ! कैसे कहूँ कि मेरे द्वारा लाया गया ये हिसाब गलत है। हाय ! किसी ने बताया होता कि हम अपना "स्टिंग-आपरेशन" स्वयं ही करते रहते हैं ! मजा तो यह है कि पुण्य कार्यों की रिकाडिंग तो एक बार ही होती है पर चूँकि पाप करने के बाद भी भय से बार-बार स्मरण होता है सो उसकी रिकाडिंग भी बार-बार होने से अमिट हो जाती है। "पेनड्राइव" खराब होने पर भी "पाप" का "डाटा" रिकवर हो ही जाता है।
हे नाथ ! ऐसी कृपा हो कि जीव-मात्र को यह समझ आ जावे कि उसे क्या करना है। आज तक जो भूल हुयी सो हुयी, अब न होने पावे और जब तुम "हियरिंग" के लिये बुलाओ तो प्रेम से, आनन्द से भरकर मैं, तुम्हारे पास आऊँ। तुम्हारे चरणों में पड़ा, नेत्र उठाकर तुम्हें निहार सकूँ और भीतर यह विश्वास हो कि दास, तुम्हारी ही कृपा से, तुम्हारे प्रेम और विश्वास पर किंचित तो खरा उतर सका।

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