Sunday 28 June 2015

साधक उस का पान करके अमरत्व प्राप्त करता है

साधक विशेषत: उज्जयी प्राणायाम का अभ्यास करता है जहाँ प्राण नाक से कंठ में और कंठ से हृदय से जाकर स्थिर किया जाता है यहाँ जालंधर बँध लगाने से मृत्यु बस में किया जाता है । वहि हृदय में संचित की हुई प्राण शक्ति भाव शक्ति और उदान वायु ब्यान वायुयों की शक्तियां संक्रमित होकर यहाँ महा भाव की शक्ति परिवर्तित होती है । क्योंकि यहाँ कुण्डलिनी शक्ति उदान वायु में संघर्ष करती है और यहाँ का विशुद्ध चक्र जागृत होता है । जब साधक जालंधर बँध लगा कर के ठोडी को वक्ष पर स्थिर करने पर कंठ मूल का निरोध होता है । और सहस्रागार का द्रवित अमृत नाभि स्थान सूर्य मुख में गिर कर भष्म होने से बचाते हैं । और साधक उस का पान करके अमरत्व प्राप्त करता है यहाँ ईडा पिंगला का भी निरोध हों जाता है । और कुण्डलिनी शक्ति सुषुमना में उर्ध्वरेता होकर प्रभाहित होती है । यहाँ साधक अमृत रस पीकर अमरत्व पाता है उसे भूख नहीँ सताती दूरी श्रवण सिद्धि आकाश गमन सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । जो गुरु गोरखनाथ जी को प्राप्त थी । 
साधक उज्जयी कुम्भक प्राणायाम तथा जालंधर बँध लगाते हुए मस्तक पर दोनो आँखो के भौंहों के बीच में ध्यान एकाग्र करें । यहाँ आज्ञा चक्र दो दलों बाला हं , क्षँ बीज अक्षरो से विद्यमान है । इसका तत्त्व बीज , ॐ , प्रणव है कर्म इंद्रिय आँखे होने के कारण आँखे बन्द करके शाम्भबी मुद्रा में ॐ कार प्रणव का अखण्ड जापएकाग्र होकर करना पड़ेगा । इस अभ्यास में प्रगति होने पर इस अभ्यास में प्रगति होने पर परा शक्ति रुप कुण्डलिनी शक्ति विशुद्ध चक्र से यहाँ प्रवेश करती है । यहाँ काया की पंचवायु शक्ति कार्य करती है । अत: यहाँ महाभाब शक्ति का चेतन शक्ति में परिवर्तन होता है । यहाँ साधक को शिव शक्ति का दर्शन होता है । तथा और अभ्यास प्रगति करने पर आत्म दर्शन ज्योति स्वरूप होता है । यहाँ साधक शीतल चन्द्र मंडल का ध्यान करने पर और सतत ध्यान करने पर साधक सम्पूर्ण शरीर स्वच्छ , पवित्र और शान्त स्थिर और सौम्यता को प्राप्त होता है । आज्ञा चक्र खुलने के लिये यह शाम्भबी मुद्रा अमृतमय सिद्ध होती है । शरीर के मूलाधार से लेकर सहस्रागार चक्र कमलों पर अन्तर मुख एकाग्र होने के लिये यह मुद्रा सिद्ध है । समस्त मन चित्त तथा प्राण का लय इस मुद्रा में होता है । यह शिव आदिनाथ साक्षात्कारी मुद्रा है । यह गुरु कृपा seसे सिद्ध होने पर शून्य अशून्य seसे परे साधक को लेजाती है ।

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