Monday 1 June 2015

अहं है तो दीनता असंभव है

प्रभु अपने निज जन का बहुत ही ख्याल करते है | पुष्टि जीव पर कृपा जब बरसनी शुरू होती है तो कई प्रकार से उसकी अनुभूति होती है | गौर से देखे तो पता चले | कभी अपनी खुद की जिंदगी की परछाई से बहार निकलकर साक्षी भाव से अपने ही ही जीवन में घटित घटना पर ध्यान ही नहीं देते , इसलिए पता कैसे चले |
जब खुद अहं के बंदी है तो दृढ आश्रय प्रभु का कैसे सिद्ध हो ? श्री वल्लभ प्रभु की कृपा से दीनतापूर्वक ही प्रभु का शरण प्राप्त हो सकता है | दीनता और अहं का ताल मेल हो ही नहीं सकता | अहं है तो दीनता असंभव है | ऐसी परिस्थिति में प्रभु कृपा करके अहं मिटाने के लिए जो भी लौकिक सुख में मोह है वह हटाना शुरू करते है | प्रभु चाहते है , इन लौकिक सुख में से बहार निकलकर जीव उनकी और कदम बढ़ाये | ये प्रभु की कृपा नहीं तो और क्या है | हम भाग्यशाली है की प्रभु की इतनी बड़ी कृपा होती है |
अपने अहं का आश्रय करने के बावजूद जब सारे पैतरे नाकाम सिद्ध होते है , अपनों से सम्बन्धो में कड़वाहट पैदा हो जाती है , जिसे अपना मानते है वो स्वार्थ के पुतले प्रतीत होने लगते है | यह बात बोलनी जितनी आसान है उतनी है नहीं | इसमें भी प्रभु की कृपा ही कारण है | यह सब रात ही रात में संभव नहीं | यह प्रक्रिया निरंतर चलती है , प्रभु हमे उनके करीब लाना चाहते है | हमारा ध्यान इस बात पर जितना जल्दी आ जाये उतना श्रम प्रभु को कम पड़ता है | प्रभु श्रम उठाते है , हमे अपनी और खीचने |
१ बार जब मन में दृढ विश्वास हो जाये कि मेरी खुद की कोई हैसियत ही नहीं , मै कुछ नहीं कर सकता , सारे दाव उलटे पड़ने लगे , तब जाके प्रभु की और हम मुड़ते है | जो भी आश्रय के रास्ते थे वे सारे टेस्ट कर लिए , सारे के सारे बेकार साबित हो चुके , तब जाके प्रभु की और आश्रय के लिए मुड़ते है | यकीन हो गया की प्रभु के अलावा और कुछ काम नहीं आना है , तब प्रभु का आश्रय सिद्ध होता है | अहं का मिटना ही दीनता का स्वरूप है | जैसे जैसे अहं की मात्रा कम होती जाती है , उसके बराबर मात्रा में दीनता बढ़ती जाती है | जैसे जैसे दीनता बढ़ती जाती है , प्रभु का आश्रय दृढ आश्रय में परिवर्तित होता जाता है |
हम पुष्टि जीव इतने भाग्यशाली है की आज के इस युग में भी हमे श्री महाप्रभुजी , श्री गुंसाईजी और सारे श्री वल्लभकुल प्रभु की कृपा से अपने ही घर में कोटि कोटि ब्रह्माण्डनायक , गोलोकधाम के स्वामी की सेवा प्राप्त हुइ है |
इसे प्रभु की कृपा नहीं तो और क्या कह सकते है ?

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