Friday 29 May 2015

वो मधुरता वाणी में होती है

. नमक के कितने भी बोरे पड़े रहे,एक चीटी भी नहीं लगती...
और शक्कर की एक डली भी रखी हो तो हजारो चींटी आ
जाती है....
ऐसे ही जिस व्यक्ति के स्वभाव में मधुरता होगी, वहां लोग
स्वयं ही पहुँच जायेगें....
और यदि नमक जैसा खारा बने रहोगे,तो कितना भी
बुलाना,कोई भी आना पसन्द नहीं करेगा...
जो मधुरता भोजन में नहीं होती, वो मधुरता वाणी में होती है !! 

देखो , उस वृक्ष में लगे पत्ते को जो अब पीला पड़ गया है , और
देखो कि उसके वृक्ष से अलग होने का समय भी आ गया ।
कभी वह कोपलों के रूप मे उत्पन्न हुआ था , अठखेलियां करता
था हवाओं के साथ , जब वह प्रौढ़ हुआ तब सर्दी , गर्मी और
बरसात मे आनंदित होता था , मस्ती में ऐसे झूमता था जैसे सब
दिन ऐसे ही गुजरेंगे , लेकिन वह नादान था ।
अब देखो उसके यह दिन भी ढ़ल गये ... 
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उसे टूटना होगा उस वृक्ष से
जो उसे दुनिया मे लाया और पोषण दिया , बिछड़न की घड़ी आ
ही गई ...शायद अब फिर कभी जुड़ न सकेगा …!
....देखो वह पीला पत्ता हवा के एक झोंके के साथ ड़ाल से अलग
हो गिर रहा है ......और गिर ही गया …!! 
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