Tuesday 19 May 2015

कहीं ये खराबी हमारे अंदर ही तो मौजूद नही

उसकी बेईमानी और हमारी ईमानदारी एक व्यंग और संदेश"""
गाँव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता था।
एक दिन बीवी ने उसे मक्खन तैयार करके दिया वो उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर
की तरफ रवाना हुवा।वो मक्खन गोल पेढ़ो की शक्ल मे बना हुवा था और हर पेढ़े का वज़न एक kg था।शहर मे किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को बेच दिया, और दुकानदार से चायपत्ती, चीनी, तेल और साबुन व वगैरहा खरीदकर वापस अपने गाँव को रवाना हो गया।
किसान के जाने के बाद, दुकानदार ने मक्खन को फ्रिज़र मे रखना शुरू किया, उसे खयाल आया के क्यूँ ना एक पेढ़े का वज़न किया जाए, वज़न करने पर पेढ़ा सिर्फ 900 gm. का निकला, हैरत और निराशा से उसने सारे पेढ़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 gm.के ही निकले।
अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़
पर चढ़ा, दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा, के वो दफा हो जाए, किसी बे-ईमान और धोखेबाज़ शख्श से कारोबार करना उसे गवारा नही।
900 gm.मक्खन को पूरा एक kg.कहकर बेचने वाले शख्स की वो शक्ल भी देखना गवारा नही करता....।
किसान ने बड़ी ही विनम्रता से दुकानदार से कहा... "मेरे भाई मुझसे बद-ज़न ना हो
हम तो गरीब और बेचारे लोग है, हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत कहाँ" आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ उसी को तराज़ू के एक पलड़े मे रखकर दूसरे पलड़े मे उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।
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इस कहानी को पढ़ने के बाद आप क्या महसूस करते हैं, किसी पर उंगली उठाने से पहले क्या हमें अपने गिरहबान मे झांक कर देखने की ज़रूरत नही?
कहीं ये खराबी हमारे अंदर ही तो मौजूद नही?

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