Wednesday, 2 April 2014

इतने बड़े पापी के लिए मेरे यहाँ कोई नरक नहीं है

हे नाथ, मेरी कोन सी गत्ति आप करोगे ,, मैं तो कुटिल, मलिन , कुदर्शन ( जिसका मुख देखना अशुभ हो ) हूँ ओर सदा विषय भोग मैं लिप्त रहता हूँ , कुल ओर कुटुम्ब के लिय धन की लालसा मैं ही मेरे दिन बीतते हैं सारी रात घोर निद्रा मैं पशु के समान ज्ञान हीन होकर सोता हूँ , प्रथ्वि को कागज बनाकर ओर कल्प व्रक्ष को लेखनी बनाएँ ओर समुंद्र के जल मैं ही स्याही घोल कर गणेश जी जन्म भर मेरे कर्मों को लिखते रहें , तब भी मेरे दोषों का अंत नहीं मिलेगा , आपने गजराज ,, गणिका , ओर अजामिल , जेसे अगणित अधम लोगों का उधार किया है यही जानकार मेनएउनसे भी महान अपराध किय मेरे जीवन के अपराधों का विवर्ण लिखते लिखते चित्रगुप्त व्याकुल हो गये,, यमराज ने भी मेरे लिए कह दिया की इतने बड़े पापी के लिए मेरे यहाँ कोई नरक नहीं है,,, हे किरपा निधान,, आप तो परम पुनितो को भी पवित्र करने वाले है,, आपका नाम तक पवित्र करने वाला कहा गया है आप का यही यश सुना तो मन मैं धेर्य आ गया की प्रभु मुझे भी पवित्र करके अपना लेंगे
जय श्री कृष्णा

No comments:

Post a Comment