Wednesday, 2 April 2014

एक कंगाल भी सिर पर छत्र धारण करके चलने वाला नरेश हो जाता है

सर्वेश्वर श्री ह्रिजी के चरण कमलों की मैं वंदना करता हूँ, जिनकी किरपा से पंगु ( दोनो पेर से लंगड़ा ) भी पर्वत को पार करने मैं समर्थ हो जाता है,, जिनकी किरपा से अंधे को भी सब कुछ दिखने लगता है,, जिनकी किरपा से बहरा भी सुनने लगता है ,,,ओर गूंगा  फिर से बोलने लगता है,, वह चाहें तो एक कंगाल भी सिर पर छत्र धारण करके चलने वाला नरेश हो जाता है,,,उस करुणामये स्वामी के चरणों की मैं बार बार वंदना करता हूँ
जय श्री कृष्णा

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