जो जाना ना जा सके अनुभव रूप (ब्रहां तत्व ) की गति उसका स्वरूप कुछ कहते नहीं बनता,,,,, वह आवर्णीय है,,,,, जेसे गूंगा मनुष्य मीठे फल के रस को ह्रदय मैं ही अनुभव करता है,, उसका वह वर्णन नही कर सकता,,, वेसए ही वह आत्म तत्व परम आनन्दरूप है,,सर्वथा सब मैं एक रस है तथा अपार तुष्टि देता है,, लेकिन मन वाणी के लिय सदा ही अगम्य है इंद्रियाँ उसे पा नही सकती,, उसे जो प्राप्त कर चुका है ,, वही जानता है,, जहाँ तक वर्णन की बात है,,, रूप रेखा रहित निराकार, निरगुन,, जाति रहित ( सर्व भेद शून्य ) ,, युक्तियों से भी परे उस परम तत्व कोई सहारा न होने से ( वाणी ) केसे उसका वर्णन करे,,, अता उस निरगुन तत्व को सब प्रकार से अगम्य जानकर मैं तो ( उस परमात्म तत्व के ) सगुण स्वरूप की लीला का ही गान करता हूँ
जे श्री कृष्णा
जे श्री कृष्णा
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