भगवान वासुदेव श्री कृष्ण जी का यही तो बड़प्पन है , की वे जगत के पिता,,, त्रिभुवन के स्वामी ओर त्रिलोकी के परम गुरु होने पर भी अपने भक्तो की भूल को भी सेह लेते हैं ,, पेर के प्रहार करने पर भी महर्षि भरग़ू के चरणों का चिह्न विन्र्म वचन ही कहे,,, भगवान शंकर ओर ब्रह्मा जी तो महर्षि भरग़ू को तो मारने ही दोड़े थे,,,यह दयामेय श्याम सुंदर बिना बदला चाहे ही उपकार करते हैं ,,बिना स्वार्थ मित्रता करते हैं ,, रावण शत्रु था किंतु उस शत्रु के भाई विभीषण से अपने सगे भाई भारत समान मिले,, पूतना राक्षसी कपाट करके सुंदर नारी रूप बनाकर दूध पिलाने के भाने मारने आयी थी,, किंतु उसे श्याम सुंदर जी ने वेकुंठ भेजा,, मेरे स्वामी श्री यदुकुल नाथ एसे दया धाम हैं की बिना कुछ दिये ही सब को सब कुछ देते रहते है
हे मूड मना अब तो भाग कर उनकी शरण हो जा इसी मैं तेरा कल्याण है
जय श्री कृष्णा
हे मूड मना अब तो भाग कर उनकी शरण हो जा इसी मैं तेरा कल्याण है
जय श्री कृष्णा
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