Wednesday, 2 April 2014

जीते जी मर जाना --- यही ध्यान हैं

जो लोग सांत्वना प्राप्त करने के लिए सद्गुरु के पास जाना चाहते हैं उन्हें पंडित - पुरोहितो के पास जाना चाहिए | यह उनका काम हैं -- की आप रोते गए , उन्होंने आपके आंसू पोछ दिए , पीठ थपथपा दी की मत परेशां हो सब ठीक हो जायेगा | कुछ उपाय बता दिए , कोई मंत्र बता दिए , कोई व्रत बता दिए , ये सब कार्य पंडित पुरोहितो का हैं न की किसी सद्गुरु का | इनमे से कोई भी जीवन को रूपांतरित करने का तरीका नहीं हैं |

सद्गुरु के पास तो मरना भी सीखना होता हैं और जीना भी सीखना होता हैं | और जीते जी मर जाना --- यही ध्यान हैं , यही संन्यास हैं | जीवन जीने की कला हैं -- जैसे कमल के पत्ते , पानी में होते हुवे भी पानी उनपे ठहर तक नहीं पाती |सद्गुरु हमें यही सिखाते हैं , और ये तीन घटनाये सद्गुरु के पास घट जाये तो चौथी घटना स्वयं हमारे भीतर घटती हैं , इसलिए उस चौथे को भी हमने सद्गुरु के लिए कहा हैं | तीन चरणों के बाद जो अनुभूति हमारे भीतर होगी, इन तीन चरणों के माध्यम से , इन तीन द्वारों से होके गुजरने से , इन तीन द्वारो में प्रवेश कर के जो प्रतिमा का मिलन होगा , वह चौथी अवस्था -------" गुरुर साक्षात परब्रह्म " | तब आप जानोगे की आप जिसके पास बैठे थे वे कोई व्यक्ति नहीं था , जिसने संभाला, मारा पीटा , तोडा , जगाया ---- वह तो कोई व्यक्ति था ही नहीं , उसके भीतर तो परमात्मा ही था | और जिस दिन हम लोग अपने सद्गुरु के भीतर परमात्मा को देख लेंगे उस दिन हमें अपने भीतर भी परमात्मा की झलक मिल जाएगी | क्योकि गुरु तो दर्पण हैं उसमे हमें अपनी ही झलक दिखाई पड़ जाएगी |इस लिए , तीन चरण हैं और चौथी मंजिल | और सद्गुरु के पास चारो चरण पुरे हो जाते हैं |" तस्मै श्री गुरवे नमः

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