Wednesday, 2 April 2014

जिसे मिटाना नहीं आता वो क्या ख़ाक किसी को सवारेगा

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुर साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||


ह एक बहुत हि अद्भुद सूत्र हैं , यह सूत्र किसी एक व्यक्ति क अनुदान नहि हैं बल्कि सदियो के अनुभव का निचोड हैं | सुना तो हम लोगो ने इस सूत्र को बहुत बार हैं , इसलिये शायद समझना भी भूल गए हैं | यह भ्रान्ति होती हैं , जिस बात को हम बहुत बार सुन लेते हैं , लगता हैं : समझ गए --- बिना समझे ही | :) 

गुरु को हमने तीन नाम दिए हैं -- ब्रह्मा , विष्णु और महेश | ब्रह्मा का अर्थ हैं जो बनाये , विष्णु का अर्थ हैं जो संभाले और महेश का अर्थ हैं जो मिटाए | इसलिए सद्गुरु वही हैं जिसके पास ये तीनो प्रकार की कलाए हैं | लेकिन हम उन गुरुवो को खोजते हैं जो हमें मिटाए नहीं बल्कि सवारे | मगर जिसे मिटाना नहीं आता वो क्या ख़ाक किसी को सवारेगा ? हम उन गुरुवो के पास जाते हैं , जो हमें सांत्वना दे | सांत्वना यानि संभाले | हमारी मलहम पट्टी करे , हमें इस तरह के विश्वास दे जिससे हमारा भय कम हो जाये , चिंताए कम हो जाये | तो ऐसे लोग सद्गुरु नहीं हैं | 

सद्गुरु तो वो हैं जो हमें नया जीवन दे , नया जन्म दे | लेकिन नया जन्म तो तभी संभव हैं जब गुरु हमें पहले मिटाए , तोड़े | एक बहुत ही प्राचीन सूत्र हैं --- " आचार्यो मृत्युः " | वह जो आचार्य हैं , वह जो गुरु हैं वो मृत्यु हैं , जिस किसी ने भी ये सूत्र कहा होगा , उसने जानकार कहा होगा , जी कर कहा होगा | पृथ्वी के किसी भी कोने में किसी ने भी गुरु को मृत्यु नहीं कहा हैं | लेकिन हमारे देश ने गुरु को मृत्यु भी कहा हैं |

हमने तीन रूप सद्गुरु को दिए | बनाने वाला , सँभालने वाला और मिटाने वाला | वो सिर्फ बनाता ही नहीं हैं , वो सिर्फ संभालता ही नहीं हैं और न ही सिर्फ मिटाता हैं | उसके अन्दर तो ये तीनो रूप मौजूद हैं , इसलिए तो सद्गुरु के पास सिर्फ और सिर्फ हिम्मतवाले लोग ही जाते हैं , जिनकी मरने की तैयारी हो , जो मिटने के लिए तैयार होता हैं सिर्फ वाही सद्गुरु के पास जाने का हिम्मत कर पाता हैं | 


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