कर्म तो करना ही पड़ेगा,,,
जेसे जंगलों मैं ओर पहाड़ों मैं अनगिनत वृक्ष स्वता ही उगते हैं,,, परन्तु धान ओर बागों के वृक्ष उस प्रकार स्वता नहीं उगते,,,,
शरीर तो स्वता उत्पान होता है परन्तु आभूष्ण बनवाने के लिय परिश्र्म करना ही पड़ता है,,,
नदी स्वता मिल जाती है,,,परन्तु ख़ुह ओर कूप के लिए खनन हेतु परिश्र्म तो करना ही पड़ता है,,,
ठीक इसी प्रकार नित्य तथा नेमितिक कर्म तो स्वभाविक रूप से होते रहते हैं,,, पर यदि मन मैं उनके फल की आशा ना रखी जाए तो वह कर्म कामिक नहीं होते ओर यही कारण है,, की वह बन्दन कारक नही होते,,,,,
जिस तरहा भूमि दान करना ,,,नल ओर खुआ खुदवाना व्रत रखना,,दान ओर यग किये जाते हैं ,,ओर यह सब सकाम कर्म हैं ,,कोई कामना रख कर ही किये जाते हैं,,, ओर इन किये कर्मों का फल जो शुभ है परन्तु वह भोगने तो पड़ेंगे ही,,,,,
जेसे देह रूपी गाँव मैं आ कर जन्म ओर मोत के झंझट तो सहने ही पड़ेंगे,,,,,
जेसे ललाट पर लिखा लेख मिटाया नही जा सकता,,,
जेसे शरीरका रंग काला हो या गोरा पर जितना चाहे धो लो मिटाया नही जा सकता,,,वेसे ही सकाम कर्मों को भोगने से कोई भी नहीं बचा सकता ,,,,,
जेसे किसी से कर्ज़ किया जाय तो जब तक कर्ज़ चुका ना दिया जाये तब तक क्या वह कर्ज़ से मुक्त हो सकेगा,,,,
जेसे जो फल हमें अत्धिक प्रिय होते हैं ,, उनके छिलके तथा गुठलिया खाने के लाएक् नहीं होती,,, पर क्या उन्हीं छिलकों ओर गुठलियों के कारण कभी कोई उन फलों को ही फेंक देता है,,,,
ठीक इसी प्रकार मैं करता हूँ ,,, एक तो इस बात का अभिमान ओर दूसरे कर्म फल का लोभ ,,,, ये दोनो बातें कर्म बन्दन का कारण हैं
जेसे फसल पक जाने पर पोधो की पतिया इत्यादि मर जाती हैं,,, ओर पतियों के नष्ट होने पर ही फसल हाथ आती है,,, वेसे ही समस्त कर्मों के नष्ट होने पर ही आत्म ज्ञान स्वयम ही खोजता हुआ जीव के सन्निकट आ पहुँचता है,,, इस युक्ति से जो लोग त्याग ओर सन्यास दोनो करते हैं ,, वे आत्म ज्ञान पाने का साधन सम्पादित करते हैं
इस लिय करता पन ओर फल की इच्छा ही बन्दन का कारण है
जय श्री कृष्णा
जेसे जंगलों मैं ओर पहाड़ों मैं अनगिनत वृक्ष स्वता ही उगते हैं,,, परन्तु धान ओर बागों के वृक्ष उस प्रकार स्वता नहीं उगते,,,,
शरीर तो स्वता उत्पान होता है परन्तु आभूष्ण बनवाने के लिय परिश्र्म करना ही पड़ता है,,,
नदी स्वता मिल जाती है,,,परन्तु ख़ुह ओर कूप के लिए खनन हेतु परिश्र्म तो करना ही पड़ता है,,,
ठीक इसी प्रकार नित्य तथा नेमितिक कर्म तो स्वभाविक रूप से होते रहते हैं,,, पर यदि मन मैं उनके फल की आशा ना रखी जाए तो वह कर्म कामिक नहीं होते ओर यही कारण है,, की वह बन्दन कारक नही होते,,,,,
जिस तरहा भूमि दान करना ,,,नल ओर खुआ खुदवाना व्रत रखना,,दान ओर यग किये जाते हैं ,,ओर यह सब सकाम कर्म हैं ,,कोई कामना रख कर ही किये जाते हैं,,, ओर इन किये कर्मों का फल जो शुभ है परन्तु वह भोगने तो पड़ेंगे ही,,,,,
जेसे देह रूपी गाँव मैं आ कर जन्म ओर मोत के झंझट तो सहने ही पड़ेंगे,,,,,
जेसे ललाट पर लिखा लेख मिटाया नही जा सकता,,,
जेसे शरीरका रंग काला हो या गोरा पर जितना चाहे धो लो मिटाया नही जा सकता,,,वेसे ही सकाम कर्मों को भोगने से कोई भी नहीं बचा सकता ,,,,,
जेसे किसी से कर्ज़ किया जाय तो जब तक कर्ज़ चुका ना दिया जाये तब तक क्या वह कर्ज़ से मुक्त हो सकेगा,,,,
जेसे जो फल हमें अत्धिक प्रिय होते हैं ,, उनके छिलके तथा गुठलिया खाने के लाएक् नहीं होती,,, पर क्या उन्हीं छिलकों ओर गुठलियों के कारण कभी कोई उन फलों को ही फेंक देता है,,,,
ठीक इसी प्रकार मैं करता हूँ ,,, एक तो इस बात का अभिमान ओर दूसरे कर्म फल का लोभ ,,,, ये दोनो बातें कर्म बन्दन का कारण हैं
जेसे फसल पक जाने पर पोधो की पतिया इत्यादि मर जाती हैं,,, ओर पतियों के नष्ट होने पर ही फसल हाथ आती है,,, वेसे ही समस्त कर्मों के नष्ट होने पर ही आत्म ज्ञान स्वयम ही खोजता हुआ जीव के सन्निकट आ पहुँचता है,,, इस युक्ति से जो लोग त्याग ओर सन्यास दोनो करते हैं ,, वे आत्म ज्ञान पाने का साधन सम्पादित करते हैं
इस लिय करता पन ओर फल की इच्छा ही बन्दन का कारण है
जय श्री कृष्णा
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