Wednesday, 9 April 2014

हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ..

न तातो, न माता, न बंधुरना दाता,
न पुत्रो, न पुत्री, न भृत्यो न भर्ता |
न जाया न विद्या, न वरुथिर मामेव,
गतिस्थ्वं गतिस्थ्वं त्वमेका भवानी ||१||

[न माता न पिता, न सम्बन्धी न बंधू, न पुत्र न पुत्री, न सेवक न पति, न पत्नी न ज्ञान और न ही मेरा एकमात्र कार्य(व्यवसाय) ही मेरे हैं... अत: मुझे केवल आपका ही आश्रय है... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

भावाब्ध्वापरे, महादुख भीरु, 
पापात प्राकामी, प्रलोभी,प्रमत्तः |
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहम,
गतिस्थ्वं गतिस्थ्वं त्वमेका भवानी ||२||

[जन्म-मरण के इस भव-सागर में, मैं एक भीरु(डरपोक) हूँ जो दुखो का सामना करने से डरता हूँ, मैं काम और पाप से भरा पडा हूँ, मैं लोभ और कामनाओ से भरा हुआ हूँ और मैं इस कुसंसार-पाश से बंधा हुआ हूँ... अत: मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

न जानामि दानं, न च ध्यान-योगम,
न जानामि तन्त्रं, न च स्तोत्र मंत्रम |
न जानामि पूजां न च न्यास योगम 
गतिस्थ्वं गतिस्थ्वं त्वमेका भवानी ||३||

[न मैं दान जानता हूँ और न ही मुझे ध्यान और योग का ही ज्ञान है, न ही मुझे तंत्र, मंत्र और न ही स्तोत्रों का ज्ञान है, न मैं पूजा जानता हूँ और न ही न्यास-योग आदि का ही मुझे ज्ञान है... अत: मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

न जानामि पुण्यं, न जानामि तीर्थं,
न जानामि मुक्तिम लयम वा कदाचित |
न जानामि भक्तिम वरूथं वापि माता, 
गतिस्थ्वं गतिस्थ्वं त्वमेका भवानी ||४||

[न मैं पुण्यों को जानता हूँ और न ही तीर्थों को, न ही मुझे मुक्ति, इश्वर के साथ एक होना और भक्ति का ही ज्ञान है और हे माता... न ही मुझे तप की विधाओं का ही ज्ञान है... अत: मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

कुकर्मी, कुसंगी, कुबुद्धि:, कुदास:,
कुलाचारहीन: ,कदाचारलीनः |
कुदृष्टि, कुवाक्य प्रबंध सदाहम,
गतिस्थ्वं गतिस्थ्वं त्वमेका भवानी ||५||

[मैं कुकर्मी, कुसंगी, कुबुद्धि और कुदास हूँ, नीच कुल से सम्बंधित मैं नीच कार्यो में ही प्रवत्त रहता हूँ, मेरी दृष्टि कुदृष्टि है और मेरे वचन सदा ही कुवाक्य होते हैं, अत: मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

प्रजेषम, रामेशं, महेशं, सुरेशं,
दिनेशं, निशिधेश्वरम वा कदाचिद |
न जानामि च अन्यात सदाहम शरण्ये, 
गतिस्थ्वं गतिस्थ्वं त्वमेका भवानी ||६||

[न मैं सृष्टि-करता को जानता हूँ और न ही लक्ष्मी-नाथ को, न महेश को और न देवो के देव को, न मैं उस देवता को जानता हूँ जिससे दिन होता है और न मैं रात के इश्वर को जानता हूँ, और न मैं किसी भी और देवता को ही जानता हूँ... अत: हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

विवादे, विषादे, प्रमादे, प्रवासे
जले च अनले, पर्वते शत्रु मध्ये |
अरण्ये,शरण्ये सदामाम प्रपाहि, 
गतिस्थ्वं गतिस्थ्वं त्वमेका भवानी ||७||

[ विवाद में, विषाद में, प्रमाद में, प्रवास में, जल में, अग्नि में, पर्वतो में, शत्रुओ के मध्य में और वन में... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो 
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः |
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं 
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||८||

[मैं अनाथ, दरिद्र, ज़रारोग युक्त हूँ, मैं अत्यंत क्षीण और बल-कांटी हीन और दीन हूँ, सदैव ही विपत्तिओं से घिरा रहने वाला मैं अत्यंत ही दयनीय अवस्था में हूँ... अत: हे माता... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ... हे भवानी... मैं केवल आपकी ही शरण हूँ...]

इति श्री शंकराचार्य विरचितं श्री भवानी-अष्टकम सम्पूर्णं |

माँ भवानी चरणार्पणमस्तु...

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