Wednesday, 9 April 2014

हमने अब रामनाम की शराब पी ली है।


हम शांत सुखस्वरूप आत्मा हैं। तूफान से सरोवर में लहरें उठ रही थीं। तूफान शान्त हो गया। सरोवर निस्तरंग हो गया। अब जल अपने स्वभाव में शान्त स्थित है। इसी प्रकार अहंकार और इच्छाओं का तूफान शान्त हो गया। मेरा चित्तरूपी सरोवर अहंकार और इच्छाओं से रहित शान्त हो गया। अब हम बिल्कुल निःस्पंद अपनी महिमा में मस्त हैं।

मन की मनसा मिट गई भरम गया सब दूर।

गगन मण्डल में घर किया काल रहा सिर कूट।।

इच्छा मात्र, चाहे वह राजसिक हो या सात्त्विक हो, हमको अपने स्वरूप से दूर ले जाती है। ज्ञानवान इच्छारहित पद में स्थित होते हैं। चिन्ताओं और कामनाओं के शान्त होने पर ही स्वतंत्र वायुमण्डल का जन्म होता है।

हम वासी उस देश के जहाँ पार ब्रह्म का खेल।

दीया जले अगम का बिन बाती बिन तेल।।

आनन्द का सागर मेरे पास था मुझे पता न था। अनन्त प्रेम का दरिया मेरे भीतर लहरा रहा था और मैं भटक रहा था संसार के तुच्छ सुखों में।

ऐ दुनियाँदारों ! ऐ बोतल की शराब के प्यारों ! बोतल की शराब तुम्हें मुबारक है। हमने तो अब फकीरों की प्यालियाँ पी ली हैं..... हमने अब रामनाम की शराब पी ली है।

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