Sunday 29 March 2015

संतोंमें यह विलक्षणता आ जाती है


 लाखों रुपयोंका बहुत बड़ा कीमती रत्न हो; परंतु पासमें रहनेपर भी उससे कोई लाभ नहीं मिलता, जबतक उसका मूल्य न ले लिया जाय । पासमें रहनेपर भी उससे रोटी नहीं मिलती, कपड़ा नहीं मिलता, मकान नहीं मिलता, सवारी नहीं मिलती, दवाई नहीं मिलती; पर उस रत्नको बेचकर दाम खड़े कर लिये जायँ तो रुपये खर्च करनेपर किसी बातकी कमी नहीं रहती । अकेला रत्न पड़ा रहे तो कुछ काम नहीं निकलता । ऐसे दरिद्रता दूर नहीं होती । ऐसे ही जबतक वह आनन्द प्रकट नहीं किया जाता, अर्थात् नाम नहीं लिया जाता, तबतक वह आनन्द प्रकट नहीं होता । नामसे वह प्रकट हो जाता है; फिर किसी बातकी कमी नहीं रहती । जाननेसे उसका मूल्य प्रकट होता है ।

हमने एक कहानी सुनी है । एक संत बाबा थे । वे कहीं भिक्षाके लिये गये । जाकर आवाज लगायी राम ! राम ! जिसके घर बाबाजी गये थे, वह रोने लग गया । बाबाजीने पूछा‒‘भैया ! रोते क्यों हो ?’ वह बोला‒ ‘महाराज ! भगवान्‌ने मेरेको ऐसे ही पैदा कर दिया है । तीन दिन हो गये चूल्हा नहीं जला है । घरमें कुछ खानेको नहीं है । भूखे मरता हूँ । आज संत पधारे, भिक्षा देनेको मन भी करता है, पर देऊँ कहाँसे ?’ संतने कहा‒‘तू घबराता क्यों है ? तू तो बड़ा भारी धनी है । तू चाहे तो त्रिलोकीको धनी बना सकता है ।’ वह गृहस्थी कहता है‒‘महाराज ! आप आशीर्वाद दे दें तो ऐसा हो जाऊँ । अभी तो मेरी परिस्थिति ऐसी है कि मुझे खानेको अन्न नहीं मिलता । आप कहते हैं कि लोगोंको धनी बना सकता है, तो यह कैसे सम्भव है महाराज !’

बाबाने संकेत करते हुए कहा‒‘वह सामने क्या वस्तु पड़ी है ?’ ‘वह तो सिलबट्टा है महाराज ! पत्थर है, जब रोटी मिल जाती है तो इसपर चटनी पीस लेते हैं ।’ बाबा कहते हैं‒‘वह पत्थर नहीं है, वह पारस है । पारसका नाम सुना है?’ ‘हाँ सुना है ।’ तो पूछा‒‘पारस क्या होता है महाराज !’ ‘लोहेको छुआनेसे सोना हो जाय, वह पारस होता है’, ‘पर महाराज ! यदि यह पारस होता तो मैं भूखा क्यों मरता ?’ संत कहते हैं कि ‘तू भूखा इसलिये मरता है कि उसको जानता नहीं । घरमें कुछ लोहा है क्या ?’ ‘हाँ महाराज ! लोहेका चिमटा है । रसोई बनाते हैं तो चिमटा काममें आता है ।’ वह ले आया तथा उसको पारससे छुआया, पर लोहा सोना बना नहीं । बाबाने कहा‒‘इसपर जमी हुई चटनी, मिर्च, मिट्टी साफ कर दे ।’ उसे साफ करके छुआया तो चिमटा सोना बन गया । संत बोले‒‘बता, अब तू धनी है कि नहीं !’ लोहेको सोना बनानेवाला पारस मिल गया, अब धनी होते कितनी देर लगे । पारस तो पासमें ही था, परंतु जानकारी न होनेसे उसे मामूली पत्थर समझता था । अब वह केवल आप ही धनी नहीं बना, बल्कि चाहे जिसको धनी बना दे ।

इसी तरह भगवान्‌का नाम मौजूद है, भगवान् विद्यमान हैं । ‘राम’ नाम लेते भी हैं; परंतु ऊपर-ऊपरसे लेते हैं, भीतरी भावसे नहीं लेते । निष्कपट होकर सरलतापूर्वक भीतरसे लिया जाय तो नाम महाराज दुनियामात्रका दुःख दूर कर दें । संत-महात्मा, भगवान्‌के प्रेमी भक्त जहाँ जाते हैं, वहाँ दुनियाका दुःख दूर हो जाता है । उनके दर्शन, भाषण, चिन्तनसे दुःख दूर होता है, धन देनेसे दूर नहीं होता । जिनके पास लाखों-करोड़ोंकी सम्पत्ति है, बहुत वैभव है, वे भीतरसे जलते रहते हैं; परंतु नाम-प्रेमी संत-महात्माओंके दर्शनसे वे भी निहाल हो जाते हैं । संतोंके मिलनेसे शान्ति मिलती है; क्योंकि नाम जपनेसे उनमें आनन्दराशि प्रभु प्रकट हो गये । प्रभुके प्रकट होनेसे उन संतोंमें यह विलक्षणता आ जाती है ।

निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार ।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार ॥

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