Friday 20 March 2015

श्रीकृष्ण ने मूल गीता में कहा है।

श्रीमदभगवद्गीता प्रत्येक मानव का धर्मशास्त्र है और सर्वश्रेष्ठ भी। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने जो संवाद अर्जुन से किया अगर उसको यथार्थ भाव में अवलोकन करें तो गीता में रंचमात्र भी संदेह के लिए स्थान नहीं है। अगर कही संदेह है तो व्याख्याकारों के अपने दृष्टिकोण की वजह से, क्योकि मूल गीता संस्कृत में है और श्रीकृष्ण की कही बात को सभी टीकाकारों ने अपने गुणों के आधार पर अर्थ निकाला है।
मनुष्य प्रकृति में मौजूद तीनों गुणों (सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) में से किसी न किसी गुण से प्रभावित होता है और इस गुण के प्रभाव में वह कही बात का अर्थ निकालता एवं समझता है और दुसरो के सामने प्रस्तुत भी करता है। 
ठीक यही स्थिति मूल गीता की टीका लिखने वाले विद्वानों के साथ भी थी। आज गीता के नाम पर सैकड़ो टीकाएँ बाजार में मौजूद है और यदि सभी टीकाओं का अध्ययन किया जाएँ तो सभी में असमानताएं मिलेंगी।
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से तो किसी एक भाव में बात कही होगी तो इसके अनेक भाव क्यों ?
इतने अलग-अलग अर्थ क्यों निकाले जाते है? 
कारण साफ़ है व्याख्याकारों का दृष्टिकोण किसी न किसी गुण से प्रभावित है तो अर्थ में असमानता होगी ही और जिस बात को योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कही है उसका यथार्थ अर्थ या भाव कोई विद्वान नहीं समझ सकता। जब समझ नही सकता तो अर्थ का अनर्थ होगा ही जिससे समाज भ्रमित होगा और भटकेगा भी।
श्रीकृष्ण एक योगी थे और योग्रुढ़ता की चरमोत्कर्ष अवस्था पर पहुंचकर उन्होंने योगेश्वर की परमस्थिति को प्राप्त किया। परन्तु ज्यादातर व्याख्याकार सिर्फ इसलिए भ्रमित हो गये क्योकि श्रीकृष्ण ने गीता में स्थान-स्थान पर मै और मुझे शब्द का प्रयोग किया है।
जैसे- 'जो भक्त मुझे भजेगा वो मुझे प्राप्त होगा'- इसका अर्थ सिर्फ इतना है कि महापुरुष ईश्वरस्थित एवं ईश्वर द्वारा संचालित होते है एवं उनके मुख से ईश्वर ही बोलता है। उनका शरीर यंत्र-मात्र होता है, इस प्रकार भजने का आशय है कि उन महापुरुष में स्थित परमात्मा को प्राप्त होगा।
वास्तव में ईश्वर स्वयं अवतरित नहीं होते बल्कि किसी-किसी विरले साधक या योगी के साधना के परिणाम में उनके घट में ही अवतरित होते है और अपनी सारी विभूतियाँ तथा शक्तियाँ प्रदान करते है, अवतार का सिर्फ इतना ही मतलब है।
योगेश्वर श्रीकृष्ण की कही बात को सिर्फ वही समझ सकता है जो उनके स्तर का महापुरुष होगा। एक महापुरुष के शब्दों को या शब्दों में छुपे भाव का को दूसरा तत्वदर्शी महापुरुष ही समझ सकता है और अन्य को समझा भी सकता है। 
इसके अतिरिक्त न तो भाषा का और न ही व्याकरण का कोई विद्वान् उस शब्द और भाव को समझ सकता है जोकि योगेश्वर श्रीकृष्ण ने मूल गीता में कहा है। वह अपने मन एवं बुद्धि का जहाँ तक विस्तार है वही तक समझ सकेगा।
वर्तमान समय में मूल गीता की सरल, स्पष्ट एवं यथार्थ व्याख्या "यथार्थ गीता" के रूप में तत्वदर्शी महापुरुष स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज ने की है।
आप सभी से अनुरोध है कि कृपया एक बार "यथार्थ गीता" का समग्र अध्ययन अवश्य करें जिससे कि ईश्वरीय वाणी श्रीमदभगवद्गीता के सत्य को समझ सके। 

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