Thursday 12 March 2015

क्रोध मनुष्य को अन्धा बना देता है

- क्रोध मनुष्य को अन्धा बना देता है।-
क्रोध एक ज्वालामुखी की तरह है। इसके विस्फोट की गूंज कई जन्मों तक सुनाई देती है और अनंत जन्मों तक इसका असर रहता है। क्रोध अच्छे भले आदमी को भी शैतान बना देता है । क्रोध एक काले नाग की तरह है जिसके डसने से हमारी आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाती है । क्रोध एक पागलपन है । क्रोध एक भयावह अग्नि की तरह है जिसमें आदमी जलने के बाद खतम हो जाता है।
क्रोध हमे नरक में ले जाता है । क्रोध दुःखों का भंडार है । इंसान को जब क्रोध आता है तब मनुष्य चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो ? उसके हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, चेहरा लाल हो जाता है, वह अपने आपा खो बैठता है, उसकी आंखे घृणा व द्वेष की चिंगारियाँ बरसाती है। उसकी आंखे देखने से ऐसा प्रतीत होता है, मानो उनसे अंगारे बरस रहे हो, भुजा व टाँगों में कंपन आने लगता है। 
क्रोध मनुष्य को अन्धा बना देता है, व्यक्ति को पागल बना देता है। क्रोध अपना पहला प्रहार विवेक पर करता है । क्रोध समझदारी को बाहर निकाल कर बुद्धि के दरवाजे की छिटकनी लगा देता है, मनुष्य को विचार शून्य बना देता है और विवेक शून्य कर कर देता है, फिर वह जो बोलता है एवं क्रिया करता है, वह शैतानियत से भरी होती है । 
दोस्तों क्रोध के कारण एक हरा-भरा गुलशन वीरान हो जाता है, एक हँसता मुस्कराता परिवार उजड़ जाता है। क्रोध सृजन नहीं, विध्वंसक करता है। करुणा में विकास है, क्रोध में विनाश है । दया में प्यार है, क्रोध में मार है । क्षमा में उद्धार है तो क्रोध में नरकद्वार है । क्षमा में प्रगति है, क्रोध में अवनति है। घृणा और क्रोध में पशुता झलकती है । एक कवि हृदय मुनिश्री की चार पंक्तिया -
क्रोध करना छोड़ दो, क्रोध दुर्गुणों की खान है । 
पतन का मार्ग है - क्रोध, फिर होता नहीं उत्थान है । 
भस्म होती है इसी में, मनुष्य की सदभावना । 
उचित और अनुचित का, फिर हो न सकता ज्ञान है ॥
दोस्तों क्रोध की अग्नि को क्षमा और सहिष्णुता के जल से बुझाएँ । क्रोध का सामना क्षमा से करेंगे, तो क्रोध चूर-चूर हो जाएगा । क्रोध को जीतने की आसान चाबी है, हमेशा धीरे व मीठा बोलें । जब भी हम पर क्रोघ का भूत सवार होने की चेष्टा करे तो उस समय मौन ले लेना चाहिए । क्रोध का गाली से प्रगाढ़ रिश्ता है, अतः उस समय अपशब्दों का प्रयोग कतई न करें । अतः क्रोध का जरा सा भी निमित्त या कारण मिले, तो शान्ति से उसका सामना कर लें, समतापूर्वक सहन कर लें, फिर जो आत्मिक शान्ति मिलेगी, वह अपूर्व होगी ।

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