संत लोग कहते हैं कि यदि कोई ऐसा ज्ञान है जिसे जानने के पश्चात अन्य कुछ भी जानने को नहीं है तो वह है --- "आत्मज्ञान"| आत्म ज्ञान ही आत्म तत्व है जिसे प्राप्त करने पश्चात अन्य कुछ भी प्राप्त करने को नहीं है| आत्म-तत्व स्वयं को प्राप्त नहीं होता, अपितु मुमुक्षु स्वयं ही आत्म-तत्व को प्राप्त हो जाता है| उसका कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता| वह समष्टि के साथ एकाकार हो जाता हैं|
यही सच्चिदानंद की प्राप्ति है| ऐसे ज्ञानी के लिए कुछ भी भेद नहीं रहता| उसके लिए दृश्य, दृष्टा और दृष्टि एक ही हो जाती है| यही आत्मसाक्षात्कार है, यही परमात्मा की प्राप्ति है|
आत्म तत्व को जानने के लिए पूर्ण समर्पण भाव से किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य गुरु के पास जाना चाहिए| उन गुरु आचार्य के द्वारा निर्दिष्ट साधना के द्वारा ही कोई मुमुक्षु आत्म तत्व का साक्षात्कार कर सकता है|
गुरु लाभ भी प्रभु कृपा से होता है| इसके लिए भक्ति और गहन अभीप्सा चाहिए|
उपनिषदों में आत्म तत्व का ज्ञान ही भरा पड़ा है| उपनिषदों को समझना बहुत कठिन है| अतः श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य गुरु के सत्संग और मार्गदर्शन में साधना अति आवश्यक है|
उपनिषदों का ज्ञान प्रेरणा दे सकता है| ग्रंथों के अध्ययन मनन से सत्संग लाभ भी मिलता है और मुमुक्षत्व भी जागृत होता है|
ह्रदय में अभीप्सा, प्रेम और समर्पण के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते|
गुरु के मार्गदर्शन में ध्यान साधना से देह की चेतना से ऊपर उठकर अनंत के विस्तार की अनुभूति और उस दिव्य पूर्णता के साथ एकाकार कि अनुभूति आत्म तत्व का बोध कराती है|
श्री रमण महर्षि का मुख्य उपदेश यह था कि प्रत्येक मुमुक्षु को निरंतर स्वयं से यह प्रश्न पूछना चाहिए कि ---- "मैं कौन हूँ?" --- (कोSहं) | इसी का निरंतर चिंतन करते करते साधक सोSहं के सोपान तक पहुँच जाता है|
अष्टावक्र गीता में अष्टावक्र जी कहते हैं कि संसार में चार प्रकार के पुरुष हैं ---- एक ज्ञानी,
दूसरा मुमुक्षु, तीसरा अज्ञानी और चौथा मूढ़।
"जो संशय और विपर्यय से रहित होता है और आत्मानंद में आनंदित होता है वही ज्ञानी है।"
अष्टावक्र जी कहते हैं ---
देह को आत्मा मानने से जन्म मरण रूपी संसार चक्र में पुन: पुन: भ्रमण करता पड़ता है| तुम पृथ्वि नही हो और न तुम जलरूप हो, न अग्निरूप हो, न वायु रूप हो और न आकाशरूप हो । अर्थात इन पॉंचो तत्वों में से कोई भी तत्व तुम्हारा स्वंरूप नहीं है और पॉंचो तत्वों का समुदायरूप इंद्रियों का विषय जो यह स्थूल शरीर है वह भी तुम नहीं हो क्योंकि शरीर क्षण क्षण में परिणाम को प्राप्त होता जाता है।
श्रुति कहती है - अयमात्मा ब्रह़म्। अर्थात जो आत्मा है वही ब्रहम् है, वही ईश्वर है।
जब मुमुक्षु --- स्थूल देह, इंद्रियों के विषयों आदि से परे हट कर साक्षी भाव में स्थित हो कर साक्षी भाव से भी ऊपर उठ जाए उस स्थिति का नाम आत्मज्ञान है|
मेरा स्पष्ट मत है कि अध्ययन से आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता| अध्ययन प्रेरणा दे सकता है और कुछ सीमा तक मार्गदर्शन कर सकता है, उससे अधिक नहीं| किसी के प्रवचन सुनकर भी आत्मज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता| राजा जनक एक अपवाद थे| प्रवचन सुनकर भी प्रेरणा और उत्साह ही प्राप्त हो सकता है|
संत लोग कहते हैं कि आत्म-ज्ञानी महात्मा (जो महत् तत्व से जुड़ा है) के चरण जिस भूमि पर पड़ते हैं वह भूमि पवित्र हो जाती है| वह कुल और परिवार धन्य हो जाता है जहाँ ऐसी महान आत्मा जन्म लेती है|
ॐ नमः शिवाय
Gives the sensation of self-realization of drab element |
Saints say that after knowing that no such knowledge does not know anything other then it --- "enlightenment" | Self-knowledge is the self element that does not get anything other after receiving | self-element does not get himself, but also his own self-element gets Mumukshu | does not have a separate existence, | it becomes union with macro |
This is the realization of sacchidanand | such knowledge does not distinguish anything | view it, is a visionary and vision | is the realization, that is the realization of God |
To learn self element of absolute dedication to master teacher should Kshotriya Brhmnisht | specified by the master teacher of meditation is interviewed by a God-seeker self element |
God is pleased with the master gain | devotion and intense desire to do it |
Full knowledge of the Upanishads is self element | is very difficult to understand the Upanishads | Discourses so Kshotriya Brhmnisht master teacher and guidance is essential to the practice |
Knowledge of the Upanishads may spur | Discourses advantage of contemplation is the study of texts and also be awakened Mumukstw |
Heart longing, love and dedication can not take a step without |
Meditated under the guidance of master's consciousness rises above the body sensation of infinite expansion and union with the divine perfection that gives the sensation of self-realization of element |
The main teachings of Sri Ramana Maharshi was that every God-seeker must constantly ask yourself the question ---- "Who am I?" --- (S-huh) | corresponding to the constant contemplation of the ladder reaches seeker sleep huh S |
Ashtavakra Gita Ashtavakra live in that world there are four kinds of men ---- a knowledgeable,
Mumukshu second, third and fourth fool ignorant.
"That is without doubt the rearrangement and rejoices in atmanand the knowledgeable."
Ashtavakra ji ---
Form of the spirit world to accept the body in the cycle of birth and death again again visits have | you're not Prithvi Jlrup you're not, do not Agnirup, not air, and not, as is Akashrup. None of these elements, elements that Poncho and Poncho elements Smudayrup your Swnrup the physical body which is subject to the senses, the body that you do not get the result at the moment is the moment.
Shruti says - Aymatma Brhhm. That same spirit Brham, the same God.
When God-seeker --- gross body, senses, etc. away from the subjects to be located in the state of the witness testimony of sense to rise above the name of the state is Enlightenment |
Is not clear to me that the study can not achieve enlightenment | study may inspire and guide to some extent, the more there | may not receive any enlightenment discourse Hearing | King Janak was an exception | discourse Hearing may also receive inspiration and enthusiasm |
People say that the philosopher saint saint (which is connected to the vital elements) are required at the stage in which the land is sacred ground | Blessed is the total and family where a great soul is born |
Namah Shivaya
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